बाई साइकिल

बाई साइकिल

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मेरे पिताजी का साइकिल था। अग्रेंज केसमय लगभग १९१५ साल की।

साइकिल का फ्रेम में जोड़ें नहीं थी चढ़नेसे अच्छा लगता। पेड़ल मरदेने मटर गाड़ी की तरह घूरता। मेरे पिताजी का जन्म दिनसे पहले चाचाजी खरीदी। चाचाजी का देहांत हो गया।पिताजी पाठ पढ़े नॉकरी किए। घर से दूर नौकरी करने से साइकिल में अ।ना-जाना करने लगता। पिताजी का पास वी हवा देने वाला पम्प प्लस रंची औऱ पेचकस रखते थे। सुबह साईकल का काम जईसा ब्रेक पंप चैक करते थे।

जब में छोटा था लगभग दस साल से ही साईकल चढ़ता था। ऊपर सीट नहीं बल्कि हाफ पेडल मारता था। जब मैं हाईस्कूल गया आठ कक्षा में नाम लिखकर साइकिल में स्कूल गया था। मैं कलेज में पढ़ा, इसी साइकिल लेकर चढ़ा। साइकिल पुराना काम तेज गति। जब में नौकरी किया साइकिल को घर छोड़ा। पिताजी चढ़र हा। पिताजी का देहांत हो गया।मेरा बड़ा भाई घर पर थे I मैं नौकरी करके बाहर था। भैया ने साइकिल बेच दिया। मात्र एक सौ रुपया दाम पर।

मैं घर पर साइकिल खोजा। माँ बोली, भैया ने बेच दिया। पुरानी चीज को हराकर मुझे लगता है कि हमारे पूर्वजों को भूल गये। प्रकाश के लिए स्मारक चाहिए।


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