बाघ और बगुले की कहानी
बाघ और बगुले की कहानी
एक बार एक बाघ के गले में हड्डी अटक गयी। बाघ ने उसे निकालने की बड़ी चेष्टा की, पर उसे सफलता नहीं मिली। पीड़ा से परेशान हो कर वह इधर उधर दौड़ भाग करने लगा। किसी भी जानवर को सामने देखते ही वह कहता-भाई! यदि तुम मेरे गले से हड्डी को बाहर निकाल दो तो मैं तुम्हें विशेष पुरस्कार दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा। परन्तु कोई भी जीव भय के कारण उस की सहायता करने को राजी नहीं हुआ ।
पुरस्कार के लोभ में आख़िरकार एक बगला तैयार हुआ। उसने बाघ के मुंह में अपनी लम्बी चोंच डाल कर अथक प्रयास के बाद उस हड्डी को बाहर निकाल दिया। बाघ को बड़ी राहत मिली। बगले ने जब अपना पुरस्कार माँगा तो बाघ आग बबूला होकर दांत पीसते हुए बोला- अरे मूर्ख! तूने बाघ के मुंह में अपनी चोंच डाल दी थी, उसे तू सुरक्षित रूप से बाहर निकाल सका, इसको अपना भाग्य न मान कर ऊपर से पुरस्कार मांग रहा है? यदि तुझे अपनी जान प्यारी है तो मेरे सामने से दूर हो जा, नहीं तो अभी तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा। यह सुनकर बगला स्तब्ध रह गाया। और तत्काल वहां से चल दिया। इसी लिए कहते हैं कि- दुष्टों के साथ जादा मेलजोल अच्छा नहीं।