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अनसुलझी पहेली

अनसुलझी पहेली

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“कल सुबह तुमसे मैट्रो पर मिलना है”

किशन की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, जब उसने नव्या का ये मैसेज देखा।

आखिर कितने दिनों के बाद नव्या ने किशन को मैसेज किया था।

तपते रेगिस्तान को जैसे काले बादलों की सौगात मिल गई थी।

किशन अगली सुबह का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।

सुबह हुई। आज किशन का उत्साह सातवें आसमान पर था।

ठीक 9.00 बजे थे. किशन के कदम तेज़ी से मेट्रो की तरफ बढ़ रहे थे।

दिल तेज़ी से धड़क रहा था। इतने दिनों बाद नव्या को देखूंगा;

कैसी होगी वो.. आखिर मुझे क्यों बुलाया है ? एक के बाद एक सवाल किशन के मन में कौंध रहे थे।

आज जी भर कर उससे बात करूँगा, प्लेटफार्म की सीढ़ियों पर चढ़ते वक़्त किशन सोच रहा था; बस सोचे जा रहा था।

एकाएक वह घड़ी आ ही गई जब किशन ने नव्या को देखा।

हर बार की तरह किशन चुपके से नव्या के पीछे खड़ा हो गया।

जैसे अपनी उपस्थिति को वह चुपके से जाताना चाहता था।

नव्या ने पलटकर देखा। अचानक उसके मुंह से निकला ,,, उफ़ ! और चेहरा झुक गया। किशन ने अपने दिल पर हाथ रखा और लम्बी सांस ली।

वही चेहरा, वही रंगत , वही झुकी हुई पलके।

सब कुछ किशन के आर-पार हो रहा था।

दोनों जैसे ख़ामोशी में ही एक दूसरे को बहुत कुछ कह रहे थे।

किशन ने पूछा, कैसे हो?

नव्या ने हर बार की तरह कहा “मैं ठीक हूँ और आप ?”

“मैं भी ठीक हूँ “, किशन ने एक भीगी सी मुस्कान के साथ कहा।

अगले ही पल नव्या ने अपने पर्स से कुछ निकाला और किशन की और बढ़ा दिया।

“ये क्या हैं ?” किशन ने हैरत से पूछा।

“खुद ही देख लो” नव्या ने दबी सी आवाज़ में कहा।

किशन के परों तले जैसे जमीन खिसक गई।

“ओह तो तुम्हारी शादी हैं?”

“हम्म। आप जरूर आना”

“तो इसलिए मुझे यहाँ बुलाया था?”

“मुझे माफ़ करना मैं नहीं आ पाउँगा तुम्हारी शादी में।”

“पर क्यों? आपको आना ही पड़ेगा।”

“अरे पत्थर दिल हो, तुम पत्थर दिल। कितनी बातें अपने दिल में समेटे बैठा था। कितने दिनों से तुम मुझसे मिल नहीं रही हो। और जब मिली तो ये सब .. ”

“मैं दुखी नहीं हूँ की तुम्हारी शादी है पर क्या तुमने मुझसे एक बार भी मिलना जरुरी नहीं समझा।”

“क्या एक बार भी तुमने मेरे बारे में नहीं सोचा “कितने सुख और दुःख तुमसे बाटना चाहता था मैं। सिर्फ एक मुलाकात चाहिए थी और तुम… ”

किशन जैसे बोखला उठा था. नव्या चुपचाप उसे सुन रही थी.

“प्लीज आप समझने की कोशिश करो। ऐसा नहीं हैं।” नव्या ने धीरे से कहा।

“वो ठीक हैं पर मैं शादी की बात नहीं कर रहा हूँ, बात थी सिर्फ एक मुलाकात की.

तुम जानती हों मेरा प्यार इन बादलों तरह एकदम साफ़ हैं ..”

“अरे समझा करों न प्लीज, ये सब मैंने हम दोनों के लिए ही किया था

ताकि बाद में किसी को दिक्कत ना हो ”

इस बार नव्या ने पूरी संतुष्टि से उत्तर दिया था।

किशन को पल भर में ऐसा लगा, जैसे नव्या के दिमाग ने उसके दिल को जोरदार तमाचा मारा था।

“अरे तुम समझ क्यों नहीं हो रही हों नव्या .. ये मैं भी समझता हूँ पर बात मेरे जज्बातों की थी। कोई इंसान इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता है?”

किशन का दिल जैसे अंदर से रो रहा था।

किशन के अंदर से एक ऐसी अनसुलझी पहेली दस्तक दे रही थी, जिसे नव्या को समझाना लगभग असम्भव सा हो रहा था.

नव्या बिलकुल निरुत्तर सी हो गई थी.

फिर भी पूरी हिम्मत जुटाकर वह बोली “आप आ रहे हो ना?”

किशन नि:शब्द हो चुका था ।

नव्या ने फिर पूछा ” आप आ रहे हो ना? बोलो .. बोलो .. प्लीज बोलो ना ..

किशन का अंतर्मन उसे कचोट रहा था। किसी निरीह साये की तरह वह चुपचाप खड़ा था।

कुछ ही देर में दृशय बदल रहा था .. …

नव्या सीढ़ियों से सरपट नीचे दौड़ी जा रही थी।

किशन हिम्मत जुटाकर पुकार रहा था ….. नव्या.. नव्या.. नव्या..

नव्या बिना कुछ सुने उतरे जा रही थी…

किशन कातर भाव से नव्या को जाते हुए देख रहा था।

अगले ही पल वह एकदम अकेला हो गया।

किशन ने बादलों की तरफ देखा … .

अक्सर ऐसा होता था की जब भी नव्या और किशन मिलते तो किशन बादलों के तरफ देखकर उससे कहता, देखो नव्या, तुम कहो तो बारिश करवाऊँ। नव्या हसकर हाँ बोलती।

इसे महज़ इत्तफ़ाक़ कहे या कुछ और पर बादल कई बार बरसा था।

आज किशन फिर से बादलों की तरफ देख रहा था। पर कमबख्त बादलों ने मुँँह फेर लिया था।

बादलों की जगह किशन की आँँखें बरस रही थी, अथक... लगातार...!


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