अंजलि
अंजलि
सांझ की बेला आसमान कहीं नीला और कहीं लाल दिख रहा है,आसमान सूना सूना सा काले धब्बों से लगा हुआ। धीरे धीरे अंधेरा होने को है, फिर कुछ ही समय में रात्रि होने की संभावना दिख रही है कुछ देर बाद थोड़ा अंधेरा बढ़ जाता है। आसमान में तारे टिमटिम आने लगते हैं कुछ लोग इधर उधर टहल रहे हैं हाथ मल रहे हैं जैसे कोई चूक हो गई हो जैसे कहीं चोरी किये हो और डर रहे हो, कि कहीं कि हम पकड़े ना जाएं चोरी में, कोई हमें पहचान न ले कि हम ही किए हैं चोरी। तभी एकाएक सन्नाटा फिर रोने की आवाज आई आई लोग चौक गए एक बार यह दृश्य देखकर।
लोगों के मुंह से
अरे !गजब हो गया कैसे? क्यों? क्या ? हुआ।
लग रहा है कि अंजलि नहीं रही।
श्री धर ( अंजलि के बाबाजी)के द्वार पर गाड़ी आती है। गांव वालों का जमावड़ा हो जाता है अरे !जिसका डर था लगता है वही हो गया गया गाड़ी से एक 16 साल की लड़की जैसे निकाली जाती है बालों को भी बिखेरे हुए उसकी मां बेटी की मिट्टी के पास बैठी हुई बेटी का नाम लिए रो रही है कह रही है अंजलि !तू कहां गई मेरी बच्ची तेरे लिए मैंने इतने सपने देखे थे कहां गई तू अंजलि!अंजलि !अंजलि !
अभी मां को आए एक महीने हुआ था अंजलि की सेवा एक महीने से कर रही थी उसे एक भयंकर बीमारी हो गई थी।
एक महीने पहले
क्या हुआ अंजलि!
उसकी बड़ी माँ बोली-
तू हमेशा एक ना एक बहाना करती रहती है जब भी काम करने का वक्त हुआ तब शुरू तेरी कहानी चल इधर आ बर्तन धोना है,अभी झाड़ू लगाना है चल काम कर कोई बहाना नहीं चलेगा चुड़ैल कहीं की।
अंजलि बोली मां !दर्द है रहा नहीं जाता चक्कर आ रहा है शरीर में असह्य पीड़ा है, बहुत दर्द है,
राधे(अंजलि के बड़े पापा का लड़का )
क्या हुआ? बहुत दर्द है,शरीर में, चल दवा ले ले।
हां भैया! (बिस्तर पर पड़ी अंजलि बोली)
डॉक्टर से दर्द की कुछ गोलियां लाकर देता है
कुछ वक्त का आराम रहा।
इस तरह है एक सप्ताह जैसे तैसे बीता। फिर कराहती हुई अंजलि को डॉक्टर के पास ले जाते हैं, डाक्टर - इसे पीलिया हो गया है जितनी जल्दी हो सके बड़े अस्पताल में भर्ती करवा दो भगवान की दया रही तो ठीक हो जाएगी। श्रीधर कहता है कि कहां दिखाया जाए पिता परदेश है उसे बच्चों की कोई फिक्र नहीं है बच्चे मर रहे हैं कि जी रहे हैं। राधे बोला चलो वहीं डॉक्टर के पास जब पैसा नहीं है तो कहां से बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया जाएगा। आप हमारे यहां से ले जाए मरीज को, अब हमारे बस की बात नहीं है डॉक्टर जवाब दे देते हैं क्योंकि बीमारी जीत चुकी थी।
राधे- चाचा जी के पास फोन करके बुला ले।
श्रीधर -हां! जरूर सूचना दे दो।
मां शकुंतला आती है मायके से।
15 साल हुआ मायके में रहते हुए। जब से बड़ी बेटी का एक्सीडेंट में मृत्यु हुई है, तब से वह इस गांव में कदम नहीं रखी है। कोई पूछने वाला भी नहीं था। लेकिन आज बेटी की मोह ने उसे खींच लायी।
मां की ममता बरस पड़ी।
आज इस हाल में देखकर नेत्रों से अपने आप अश्रु गिरने लगे। मेरी बेटी नहीं रहेगी अब यहां। मैं इसे लेकर ननिहाल जा रही हूं,वहीं पर इसकी दवा करवाऊंगी। कोई कुछ नहीं कहता है,
अंजलि के मामा आते हैं और दोनों को लिवाकर चले जाते हैं। वहां उसका इलाज चलता है। जब कोई भयानक बीमारी अपनी सीमा को लांघ जाए तो वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है।
बिस्तर पर पड़ी अंजलि की सेवा जिस प्रकार आज शकुंतला कर रही है उसी तरह अगर पहले की होती तो शायद आज ये दिन ना देखना पड़ता।
शकुंतला देवी रोती है।
अंजलि- मत रो ! जिस तरह से तू मेरी सेवा कर रही है शायद इतने दिन की सेवा करने के लिए, ईश्वर ने मुझे तेरे पास भेजा है।
माँ! वो लोग मुझे बहुत परेशान करते थे। मेरी दवा नहीं करवाते थे। मुझे बहुत मारते थे, अच्छे से सोने भी नहीं देते थे।
माँ! अब मैं तेरे पास रहुंगी।
मुझे मत छोड़ना। कराहती अंजलि अपने माँ को आज वो सब बाते बतायी जो उसके साथ उसके घर वाले किये थे।
एक ख्वाहिश थी कि बड़ी होकर मम्मी के साथ रहकर काम में हाथ बाटूंगी साथ रहकर सुख-दुख बाटूंगी। पर मेरी मां ने तो मुझे पहले ही छोड़कर दूसरे के यहां चली आई। मुझे नर्क में रखकर खुद स्वर्ग की ख्वाहिश करने लगी मुझे नहीं पता था कि मेरे खुद के ख्वाहिशों को मुझे दफन करना होगा। और वह कफ़न भी मेरे माता और पिता खुद ओढायेंगे।
बचपन में जो मस्ती जो खुशी मिलती है उसका मुझे अनुभव भी नहीं है हमने सिर्फ उन खुशियों और मस्तियों को दूर से देखा है। मुझे वो खुशी नहीं मिलेगी हमने तो कल्पना भी कभी ना की थी।
जब मेरी जन्म दात्री मां मेरा साथ छोड़ दे तो भला मुझे यह सब खुशियां बचपन की मस्तियां रात की
सुलाते वक्त मां की लोरियां सब एक स्वप्न सा प्रतीत हुआ। हम क्या जाने बचपन क्या होता है,बचपन के आनंद खेल कूद के सब मेरे बचपन के सपने ही बस रह गए। मां पिता के नाम पर सिर्फ ना ही रह गए शायद मेरे साया मेरे ऊपर किसी का ना रहा हम तो बिना साये के जिएं जा है। वो भी एक मजबूर की जिंदगी जो मजबूरी में जीएं जाते हैं मेरा जीवन भी मजबूरियों के तले धंसा तो बस धंसा ही रहा। सबको अपने स्वार्थ कि ही पड़ी रही और मैं घुन सा उसमें पिसती रहीं। किसी से कोई उम्मीद और उल्लास न रहा, कुछ रहा भी तो बस इतनी ही शिकायत रहे खुद से।
हम तो जिए जा रहे हैं एक जिंदगी। उसमें परिभाषा के नाम पर सिर्फ जिंदगी से शिकायतें मिली पर ये जिंदगी मुझे कहीं ना मिली सारी उम्र हम तो बस तलाशते रहे खुद को, कि कोई बचपन लाकर मुझे दे दे। पर मुझे जिंदगी ही ना मिली तो बचपन क्या मिलेगा।
यूँ गुजर था रहा था हर लम्हा की जैसे किसी ने गुजारे हो हम पर ; ता उम्र हम ख्वाहिशों में डूबे रहे पर ना ख्वाहिश पूरी हुई और ना उम्र। लोग कहते रहे हम सुनते रहे जिंदगी की परिभाषा कुछ यूँ ही हम बुनते रहे और धागा भी बहुत कमजोर निकला जिससे हम सिलते रहे।
मुझे भी याद है जब कभी वैशाख के महीने में तपती दोपहर में वह मेरे घर आती तो,
घर से राधे की मां बुलावा भेज देती। और घर जाने के बाद कहती दुष्ट चुड़ैल सभी काम पड़ा है,और तू आराम फरमा रही हैं दूसरे के घर में।
अभी तुझे बताती हूं,डंडा लाकर मारना शुरु कर देती है।
आराम करेगी तू कर आराम तुझे बताऊंगी कैसे आराम किया जाता है।
वह कभी विद्यालय न जा सकी।
उसके पढ़ने की सारी ख्वाहिशें मिट गई।
ना वह कभी चैन से सो सकी ना जी सकी।
यह उसके कर्मों का फल कहा जाए अथवा बदकिस्मत कहा जाए जो उसे कुछ ना मिल सका। सारी ख्वाहिशें आरजू के पौधे ही रह गए जो पुलकित और पल्लवित ना हो सकी।
आषाढ़ के महीने में तो चलते चलते उसके पैर कट जाते थे;
राधे की मां! कहां मर गई, अरे ! चुड़ैल जल्दी खाना पका कर चल खेत में धान रोपने है।
बिस्तर पर पड़ी अंजलि अपनी दुख भरी जीवन की कहानी बताते बताते वह रो पड़ती है।
अंजलि कहती है- मां !दिन भर काम करते करते थक जाती थी फिर भी वह बड़ी मां मुझे बहुत मारती थी।
शकुंतला मत रो बेटी! अब तुझे वहां नहीं जाना है।अब मैं तुझे नहीं छोडूंगी तू यहीं अपने मामा के घर रहेगी। सो जा बेटी तू।
सूरज की लालीमा के साथ दिन की शुरुआत! शकुंतला बेटी से दातुन कर ले कुछ फल-जूस लेकर ठीक हो जा जल्दी से।
मां अंजलि से कहती है कि
वहां तो फल खाने के लिए नहीं मिलता था।
दवा भी नहीं करवाए।
शाम के समय
मां ! क्या मैं ठीक हो जाऊंगी।
शकुंतला- हां! बेटी तू ठीक हो जाएगी।
मां !आज बहुत दर्द हो रहा है।
कहीं मुझे जल्दी से ले चल; मुझसे रहा नहीं जा रहा है। असह्य पीड़ा है शरीर में। कुछ क्षण बाद।
कुछ दिखाई नहीं दे रहा है,सब धुंधला - धुंधला सा है। मां! कुछ कर न।
बेटी! तू परेशान मत हो मैं हूं ना .
तुझे कुछ नहीं होगा रो मत बेटी तुझे कुछ नही होगा। मां सारे डॉक्टर मुझे जवाब दे चुके हैं।
तो मेरा क्या होगा ?
मां ! दर्द बहुत बढ़ रहा है।
क्या करूं मैं मां अब मैं नहीं बचुंगी।
मां आंखें बंद हो जा रही है, इस तरह वह दर्द से कराहती, कलपती, अंजलि भगवान को प्रिय हो जाती है।