अंधविश्वास
अंधविश्वास
रमेश और रत्नाकर अच्छे मित्र थे। दोनों के घर भी ठीक आमने सामने ही थे। दोनों ने साथ ही शिक्षा ग्रहण की थी और अलग अलग कंपनियों में अच्छी पोस्ट पर काम भी कर रहे थे। यद्यपि दोनों बहुत अच्छे मित्र थे लेकिन उनके विचार एक दुसरे से भिन्न थे। अक्सर दोनों में किसी बात को लेकर बहस होती , कुछ देर नाराज रहते और फिर एक दुसरे से बात करने के बहाने खोजते। रमेश जहां आधुनिक विचारों का व एक खास राजनीतिक पार्टी का समर्थक था वहीं रत्नाकर अपेक्षाकृत धार्मिक रूढ़िवादिता व रीति रिवाजों के साथ ही रमेश के पसंद की राजनीतिक पार्टी के विरोधी पार्टी का समर्थक था।
दोनों किसी काम से शहर जाने के लिए घर से निकले। तभी सामने से आते रामु ने आवाज लगाई ” अरे ये दोनों हीरो कहाँ जा रहे हैं सवेरे सवेरे। ” रमेश ने बताया ” काका ! शहर जा रहे हैं कुछ काम से। ” लेकिन रामु के सवाल पुछने से नाराज रत्नाकर क्रोध को मन में दबाये रमेश से बोला ” तु दो मिनट ठहर ! मुझे प्यास लगी है। अभी घर से पानी पी कर आता हूँ। ” इसकी वजह समझकर रमेश मुस्कुराते हुए बोला ” ठीक है ! जल्दी से आ जाना। ”
पानी पीकर रत्नाकर जैसे ही दरवाजे से बाहर निकला पड़ोस के वर्माजी बड़े जोर से छींक पड़े। क्रोधित रत्नाकर वहीं से चिल्ला कर बोला ” रमेश ! तु जा। मैं पिछेवाली बस से आऊंगा। ”
रमेश शाम को शहर से वापस आया तो अपने घर के सामने लोगों की भीड़ देखकर घबरा गया। पता चला वर्माजी के छींकने की वजह से रत्नाकर ने रमेश के साथ न जाकर उससे पीछे वाली जो बस पकड़ी थी वह शहर पहुंचने से पहले ही बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी। दो यात्रियों की मौके पर ही मृत्यु हो गयी थी और कई यात्री घायल थे। घायलों में रत्नाकर भी था और शहर के अस्पताल में भर्ती था।
पुरी खबर सुनकर रमेश सोचने लगा ‘ काश ! अंधविश्वास के चलते उसने पहली बस नहीं छोड़ी होती। ‘