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Om Prakash Gupta

Inspirational

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Om Prakash Gupta

Inspirational

अहसास के धागे

अहसास के धागे

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किशोरावास्था की दहलीज पर पहुंचते ही सोनिया ने सेकेंडरी स्कूल सार्टिफिकेट की परीक्षा पास कर ली थी। उसके माता पिता गरीब थे। वह अपने मां पिता की इकलौती संतान थी,बचपन में उसके पिता एक सड़क दुर्घटना में स्वर्ग सिधार गए, चूंकि वे एक शासकीय कर्मचारी थे इसलिए सोनिया की मां श्रीमती जया जी को उसी विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति मिल गई थी।जैसे तैसे मां बेटी अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी गुज़र बसर कर लेते थे। सोनिया जैसे जैसे बड़ी होती जा रही थी वैसे वैसे वह परिवार की जिम्मेदारियों के साथ खुद को अहसास के धागे में बांधने में बांधने लगी थी क्योंकि उसे अपने भविष्य के साथ बूढ़ी होती मां के परिवरिश की चिंता थी। अतः वह मां के साथ काम में हाथ बंटाने के साथ बड़ी तन्मयता से अपने अध्ययन में लगी रहती।वह मेधावी थी इसलिए वह सभी परिक्षाओं में उच्च स्थान प्राप्त करती जिसके कारण उसे शासकीय वज़ीफा भी मिलता था। 

 रोहन एक धनी और संभ्रांत मां पिता का पुत्र जरूर था पर उसमें मेधावी होने के साथ मानवीय संवेदनाओं का गुण कूट कूट कर भरा हुआ था। अक्सर वह बाल आश्रम में जाकर निर्धन और अनाथ बच्चों की मदद करता, उनके पहनने के कपड़े, कापी किताब के खर्चे तक को खुद वहन करता,कभी कभी आश्रम के बच्चों के बीच अपना या उन्हीं बच्चों के जन्मदिन मनाने के बहाने जाता और उनके बालकोचित व्यवहारों और भावनाओं को समझने की कोशिश करता। उनके क्लास में जाकर पढ़ाता,खेल के मैदान में ले जाकर सबके साथ खेलता,खेल में खुद हारकर उन बच्चों को जिताता और अपनी हंसी भी बनवाता।उन लोगों के साथ ये सब करने में अनिर्वचनीय आनन्द आता।

 ग्यारहवीं कक्षा में दोनों एक ही कालेज में एडमीशन ले चुके थे। साइंस स्ट्रीम चुनने के कारण दोनों एक ही सेक्शन में पढ़ने लगे थे।को-एजूकेशन था, अतः थ्योरी के क्लास के साथ प्रेक्टिकल लैब में सभी एक दूसरे के साथ होने वाली कठिनाईयों को साझा करते और समाधान भी ढूंढते।स्वाभाविक रूप से रोहन और सोनिया भी एक दूसरे के अध्ययन में आने वाली दिक्कतों को दूर करने की कोशिश करते। सोनिया के सम्पर्क में आते ही रोहन को समझने में तनिक भी देर न लगी कि उसका परिवार धन के अभाव में अनेक बाध्यताओं से ग्रसित है। अतः वह गाहे -बगाहे निश्छलतापूर्वक पठन-पाठन की सामग्रियों के अतिरिक्त धन से मदद करता। उसने कई बार उससे अपनी मां जया जी से मिलवाने का अनुरोध किया,आखिर में सोनिया ने वक्त निकाल कर अपनी मां से मिलवा दिया। रोहन तो मानवीय गुणों से भरपूर होने के साथ आकर्षक शरीर और व्यक्तित्व का धनी था ही। सो वार्तालाप के दौरान सोनिया की मां उसके उद्गार और उदारतावादी सोच की कायल हो गयीं।रोहन भी उसकी मां में परवश में पड़ी अपरिहार्य विवशताओं के बेड़ियों से जकड़ी और उससे निजात पाने आतुर हो छटपटाती हुई भारत मां के समान अहसास के धागे में बंधा पाता।

 समय के प्रवाह के साथ साथ जया जी और रोहन आत्मीयता की डोर में बंधने लगे।एक मजबूर मां की क्या विवशता हो सकती है ? उसका अंतर्मन इसको भलीभांति महसूस करता था,पर वह कहता कुछ भी न था,वह बहुत कुछ करना चाहता था पर अज्ञात शक्ति अथवा यों कहें उसका संकोच रोकता था शायद वह अभीष्ट वक्त के इंतजार में था। उसकी मां भी आशाओं, निराशाओं की सीमाओं की प्रतिबद्धता में उलझी हुई थी।वह रोहन में एक आदर्श पुत्र की झलक देख रही थी, वह उससे वह सब कुछ बोलना चाह रही थी जो उसके मन में हिलोरें ले रहा था, पर कंठ से निकले उद्गार को उसके होंठ आगे बढ़ने नहीं देते थे। वक्त बड़ा बलवान होता है,नियति जैसा चाहती है,वह व्यक्ति से वैसा ही व्यवहार करवाने लगती है।

 गुजरते वक्त के साथ रोहन, सोनिया और उसकी मां के बीच आत्मीयता और नजदीकियां बढ़ती जा रही थीं।उसकी मां जया जी रोहन पर ममता भरी प्यार उड़ेलने लगी,सोनिया और रोहन भी किशोरावास्था से गुजर रहे थे, अतः उनमें भी एक दूसरे के प्रति वे सभी जज़्बात उमड़ने लगे थे जो प्रत्येक किशोर किशोरी में होता है।रोहन आर्थिक मदद के साथ उन लोगों एक मजबूत मानसिक आधार भी देता जिनकी उन्हें आवश्यकता थी।धीरे धीरे रोहन उन लोगों के साथ काफी वक्त गुजारने लगा,एक समय ऐसा आया कि वे सभी ज़रा सा भी अलग रहने पर बहुत बैचेनी महसूस करते।

 रोहन के माता पिता,रोहन में इस तरह के परिवर्तन को बहुत दिनों से अनुभव कर रहे थे। उन्हें यह तो पता था कि उनका बेटा उस गरीब परिवार की यथासंभव करता है। जरूरतमंद की मदद करते देखकर उन्हें बहुत खुशी होती थी। कभी कभी उसके माता पिता आपस में बातचीत के दौरान उसकी तारीफ करते हुए कहते कि यह मानवता का तकाजा है।पर उसको अधिकतर वक्त वहीं बिताते देखकर चिंता की लकीरें उनके ललाट गहराती दिखतीं।

 रोहन और सोनिया के बीच उमड़ती भावनाओं, कामनाओं के बीच उठे ज्वार के जज़्बात उनकी अंतरंगता और नजदीकियां बढ़ाते जा रहे थे। अब वे दोनों एक दूसरे के प्रति सुनहरे भविष्य के सपनें संजोने लगे थे। रोहन, सोनिया में वह सभी कुछ खोजता जिसका वह दूरी तक सुखद स्वप्न देखना चाहता।उधर सोनिया भी रोहन के प्रति उन अपेक्षाओं के पाने की लालसा के साथ उधेड़बुन में लगी रहती।शायद अब वे दोनों अंदर ही अंदर एक दूसरे के पूरक मानने लगे थे। 

 धीरे धीरे वे युवा होने के संग अपनी पढ़ाई भी पूरी कर चुके थे। नौकरियों के लिए वे प्रतियोगिता में बैठते, साक्षात्कार देते। अन्ततः उन दोनों ने सूचना प्रौद्योगिकी (आइ०टी० सेक्टर) में नौकरियां हासिल कर लीं। सोनिया की मां बहुत खुश हुई। इधर इन दोनों की दिनचर्या नौकरियों के अनुसार सामंजित हो गई।पर दोनों एक दूसरे का बड़ा ख्याल रखते, सोनिया,रोहन के लिए नाश्ते से लेकर दोपहर का भोजन और रात के खाने तक का ख्याल रखती, वहीं रोहन, सोनिया को अपनी बाईक से उसके आफिस छोड़ते हुए अपने कार्यालय जाता, आफिस में काम करने के दौरान उसके बारे में पूछता,एक ही प्रोफेशन होने के कारण उनकी दिक्कतों को दूर करता।एक दूसरे के प्रति इस तरह के व्यवहार को देखकर सोनिया और रोहन को यह समझ में आने लगा कि दोनों आदर्श जीवन साथी बन सकते हैं। अपरोक्ष रूप से वह दोनों से अलग अलग बात करते यह महसूस भी करती थी।एक दिन उसकी मां जया जी ने सोनिया के सामने ही रोहन के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा,तो रोहन अंतर्मन से सहमत था पर वह बाहर से निर्णय लेने की स्थिति में नहीं दिख रहा था,शायद वह इस प्रस्ताव पर कहीं न कहीं अपने मां पिता को भी पक्ष में लेना चाहता था।पर उसे यह भी पता था कि वे शायद ही इसके लिए तैयार हों। अतः कहीं न कहीं उनके विरोध के बावजूद उसको इस बात के लिए अपना मजबूत निर्णय सुनाने के लिए तैयार करना पडेगा।

 अनुमान के अनुसार जैसे ही रोहन ने सोनिया के संग विवाह का जिक्र छेड़ा, उसके मां और पिता अपने पूर्वजों और परिवार की परम्परा और प्रतिष्ठा की दुहाई देने लगे और इस प्रस्ताव का विरोध करने लगे। अंत में रोहन को कहना पड़ा कि हमारा मानना यह है कि हमारे जीवन का सुखद भविष्य इस प्रस्ताव को स्वीकार करने में है। अतः इस संबंध को स्वीकारने का हमारा अपना अंतिम निर्णय है।रोहन ने विवश होकर सोनिया से कोर्ट मैरिज कर ली।अब वे अपना सुखद और आनन्दित जीवन बिताने लगे।

 एक दिन रोहन और सोनिया आफिस जाने के लिए तैयार हुए। सोनिया मोटरसाइकिल के पीछे सीट पर बैठ गई और रोहन ड्राइव कर रहा था। चौराहे को जैसे ही मोटरसाइकिल क्रास कर रही थी,तभी किसी ने पीछे से टक्कर मार दी। इससे दोनों सीट से नीचे सड़क पर गिर पड़े।रोहन को हाथ पैर के घुटनें में मोच और खरोंच आई पर सोनिया के सिर में गम्भीर चोटें आ गईं थी और वहां से रक्त प्रवाह हो रहा था। ट्रैफिक रुक गया,तुरन्त एम्बुलेंस मंगाई गई। दोनों को पास के अस्पताल पहुंचाया गया। रोहन को प्राथमिक उपचार कर छोड़ दिया गया,परन्तु सोनिया को आइ0सी0यू0 में रखा गया।अगले दिन उसे आपरेशन थियेटर ले जाया गया। डाक्टर की टीम आपरेशन थियेटर में घुसी।समय बीतता जा रहा था, सोनिया के स्वास्थ्य के बारे में कोई सूचना नहीं प्राप्त हो रही थी।रोहन के मस्तिष्क में आशंकाओं का तूफान खड़ा हो गया था।वह कुछ भी सोच नहीं पा रहा था। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वह थियेटर के बाहर पड़े बेंच पर थोड़ी देर बैठता, खड़ा होता।

वह बदहवास सा हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहलकदमी कर रहा था। ऑपरेशन थिएटर की रेड लाइट उसे चिढ़ा रही थी। पिछले 3 घंटे से सोनिया ऑपरेशन थिएटर के अंदर थी। अकेले रोहन की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी। कभी वह सोनिया की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता ;कभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट की तरफ देखता ;कभी घड़ी की तरफ देखता। 

रोहन ने अपने मां, पिता और सोनिया की मां जया जी को इस दुर्घटना की जानकारी मोबाइल फोन पर दे रखी थी; सो वह उनके आने का इंतजार कर रहा था।तब ही रोहन की नज़र सामने से आती,सोनिया की मम्मी जयाजी पर पड़ी।जयाजी की मानसिक मजबूती उनके व्यक्तित्व से ही झलकती थी।वक़्त के थपेड़ों ने उन्हें हर परिस्थिति को धैर्य से सम्हालना सीखा दिया था। उनके स्वयं के मन के समंदर के भीतर भारी तूफ़ान आया हुआ था ;लेकिन चिंता की लहरें उनके साहस के किनारों को हिला नहीं पा रही थी। रोहन के फ़ोन के बाद से अब तक उन्होंने अपने को सम्हाल रखा था। वह अच्छे से जानती थी कि अगर वह ज़रा भी बिखरी तो रोहन और सोनिया को कौन समेटेगा।उधर अब तक रोहन अपने आपको जैसे -तैसे सम्हाल रखा था ;लेकिन जयाजी पर नज़र पड़ते ही रोहन के सब्र का बाँध टूट गया और वह बिलख -बिलख कर रोने लगा। 

"रोहन बेटा,फ़िक्र मत करो। सब ठीक हो जाएगा। ",जयाजी रोहन को दिलासा देने लगी। जयाजी की इकलौती बेटी सोनिया जीवन और मृत्यु के मध्य झूल रही थी। रोहन के घरवालों ने तो उसी दिन रोहन से सारे संबंध तोड़ लिए थे ;जिस दिन उसने जयाजी की बेटी सोनिया का हाथ थामा था। 

अब रोहन और सोनिया की मम्मी दोनों ही आपरेशन थियेटर के बाहर बेंच पर बैठे डाक्टरों की टीम का इंतजार करने लगे।कई घंटे बीतने के बाद एक डॉक्टर बाहर निकला, रोहन उसके पास सोनिया के स्वास्थ्य का हाल जानने के लिए लपका।

"डाक्टर साहब,मरीज की हालत ठीक तो है ? रोहन ने भर्राई आवाज में पूछा।बगल में जया जी भी खड़ी थी।

"अच्छा, आप लोग मरीज के परिजन हैं,तो आप लोगों को बता दूं कि मरीज़ की हालत स्थिर है, उसको बहुत अंदरूनी चोट आई है,हम लोगों को ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह जल्दी खतरे से बाहर आये।

अब तो दोनों की हृदय की धड़कनें बढ़ने लगीं। मां के आंखों से आंसुओं का प्रवाह तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था,वह तो बार बार अपने आंचल से आंसुओं को पोछती, पर रोहन को दिलासा देती।

सर्वशक्तिमान ईश्वर बहुत दयालु है,वह सब पर अहैतुक कृपा बरसाता है,इस दुनियां में जो सन्मार्ग पर चलते हैं,सच्चे हृदय के और निश्छल होते हैं,वे ईश्वर के नजदीक होते हैं उन सभी पर उसकी विशेष कृपा होती है।उस पर भरोसा रखो। वह सबसे बड़ा चिकित्सक है जब डाक्टरों के सभी प्रयास निष्फल हो जाते हैं, तब उसकी कृपा से सोया मरीज भी दौड़ने लगता है।वे दोनों अस्पताल के पास मन्दिर में जाकर मूर्ति के सामने खड़े होकर पूरे मनोयोग से प्रार्थना कर सोनिया के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

अगले सुबह एक नर्स निकलकर आई और बोली आपके मरीज की हालत ठीक हो रही है,ईश्वर का शुक्र मनाओ। अभी कुछ घंटे पहले उसके स्वास्थ्य के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल था। उन दोनों ने कहा हम लोग मरीज से कब मिल सकते हैं। नर्स ने कहा,एक घंटे बाद हम मरीज को जनरल वार्ड में शिफ्ट कर देंगे, तब आप लोग उसके बेड के पास चले जाना।

एक घंटे बाद मरीज जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया,रोहन और सोनिया की मां सोनिया के बेड के पास गए और उसको देख कर भावुक हो गए। सोनिया,रोहन को भावुक देखकर बोली,रोहन!तुम तो पुरुष जाति के हो, तुम्हें ऐसा शोभा नहीं देता। नियति के ऐसे आघात मनुष्य को मजबूत बनाते हैं और संघर्षशील होने की प्रेरणा देते है।इस पर रोहन बोला, प्रिये ! तुम हो तो हम हैं, तुम्हारे बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं। यह कहकर दोनों लिपट कर रोने लगे। 


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