आस्तित्व
आस्तित्व
"तू बैठ,यह थाली तेरे लिए ही मँगवाई है।"
"क्या नाम है तुम्हारा"?छोटू ने कोई जवाब नहीं दिया।
"डरो मत,मालिक कुछ नहीं कहेगा,मैं बात कर लूँगा।बताओ क्या नाम है ? सुबोध ने प्यार से पूछा।हालांकि छोटू जानता था कि आज उसे बहुत मार पड़ने वाली है पर,साफ प्लेट में रोटी का मोह छोड़ नहीं पाया।इसलिए प्लेट अपनी ओर थोड़ी और खिसका कर धीरे से बोला "जी,जो मर्जी कह लो।"
"कुछ तो नाम होगा,परिवार कहाँ है?"
"जी, कोई नहीं है।"कह कर जल्दी जल्दी खाना खाने लगा।
"आराम से खाओ,कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा।
"यहाँ कब से हो "?
"मेरे साथ चलोगे ?" छोटू का हाथ मुंह में ही रुक गया।
"कहाँ ? मालिक नहीं जाने देगा। माई ने दो साल पहले तीन सौ रूपये उधार लिए थे।कर्जा दिया नहीं,और मर गई।मैं कहीं नहीं जा सकता।"
"अगर उसे मैं पैसे दे दूँ तो? बस जब मैं उससे बात करूँ तो मेरा हाथ मत छोड़ना।उसे मनाना मुश्किल है पर वो मान जायेगा।तुम डरना नहीं।" छोटू की आंखों में चमक आ कर चली गई।
"साहेब आपका भी ढाबा है?"सुबोध मुस्कुराया और बोला "नहीं,तुम्हें पढ़ने स्कूल भेजूंगा।
"जाओगे?"छोटू की आंखों की चमक वापिस आ गई।
"साहेब,माई 'रमेस' कहती थी"।
जल्दी से पानी के गिलास से वहीं हाथ धोये,और साहेब का हाथ कस के पकड़ लिया।
