आर्थिक निर्भरता और नारी जीवन
आर्थिक निर्भरता और नारी जीवन
आज मेरे यूट्यूब के चैनल की पहली पेमेंट आई थी। मैं बहुत खुश थी। जीवन में पहली बार अपनी कमाई को अपने हाथों में लेने का सुख अलग ही था। मैंने आज खीर बनाई और भगवान को भोग लगाया उसके बाद अपने ढाई वर्षीय पुत्र प्रियांशु को खाना खिलाया और उसको पलंग पर ले जाकर सुला दिया। उसके बाद मैं भी प्रियांशु के पास ही लेट गई। इतने में ही प्रियंका फोन आया। प्रियंका मेरे बड़े जेठ की लड़की है और मुझसे 3 साल बड़ी है। मेरे लिए वह मेरी सहेली और बड़ी बहन की तरह है भले ही हमारा रिश्ता मां बेटी जैसा रहा है। प्रियंका ने फोन पर मुझे बधाई दी। मैंने उसे धन्यवाद दिया और फिर से अपने बेटे के पास लेट गई। मैंने जो कुछ भी किया अपने इसी बच्चे के लिए किया था। मैं अपने बच्चे के सिर को हाथ से सहलाते हुए अतीत की गलियों में खो गई। मेरे घर में मेरे पिता मां और बड़े भाई राहुल समेत मैं यानी रितिका चार ही लोग थे। मेरे पापा हलवाई का काम करते थे बहुत ही आराम से हमारा घर खर्चा चल जाता था। मैं 7 वर्ष की हुई की मेरे पिता हम सब को छोड़कर इस दुनिया से चले गए। मैं अपने पिता के बहुत करीब थी मैं बहुत रोयी। मां का भी रो रो कर बुरा हाल था। भैया भी बहुत उदास था। उस समय भैया की आयु 13वर्ष की थी। वह सातवीं में पढ़ता था। धीरे-धीरे हम सब ने खुद को संभाला। मम्मी सिलाई का काम करके हम दोनों भाई बहनों को पालने लगी। मेरे भाई का वैसे भी पढ़ाई में मन नहीं था। वह किसी होटल में बर्तन धोने का काम करने लगा। मेरी पढ़ने में रुचि थी। मेरी जिद को देखकर मम्मी ने मुझे पढ़ने भेजा। समय तेजी से निकलता गया। मेरे भैया की शादी रीना नाम की लड़की से हो गई। कुछ दिन तो घर का माहौल अच्छा रहा उसके बाद रीना ने अपने लक्षण दिखाने शुरू कर दिए। रीना भाभी हर वक्त घर में कल का वातावरण बनाए रखती। मेरी पढ़ाई को लेकर मुझे ताने देती। मेरा भाई और मैं भी अब मेरी शादी करना चाहते थे। परिस्थितियों के कारण मेरा भी पढ़ाई से मन ऊब गया। भाभी का जब पहला बच्चा हुआ तो उसकी देखभाल के बहाने सब ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी। इतने में मेरा मुंह बोला मामा राकेश मेरी मां के पास आया। उसने मां को मेरे लिए गुजरात के किसी परिवार में रिश्ता बताया। लड़के वाले बिना दहेज के शादी को तैयार थे बदले में ₹100000 वापस देने के लिए भी तैयार थे। मम्मी व भैया जल्दी से तैयार हो गए। मैंने मेरे होने वाले पति को कभी नहीं देखा था। मामा ने ₹100000 में से ₹50000 मम्मी के हाथ में थमा दिए वह बोला कि बाकी के 50,000 रुपए शादी की तैयारियों में खर्च हो गए। मंदिर में हमारी शादी हुई। मैंने अपने पति का चेहरा ढंग से नहीं देखा था। ना ही मेरे पीहर वालों ने। मैं शादी करके अपने ससुराल गुजरात आ गई। मैंने अपने ससुराल में कदम रखा तब मेरी आयु मात्र 16 वर्ष थी। मेरे गृह प्रवेश की रस्म के बाद शादी की सारी रस्में संपन्न हुई। मैं थोड़ी सी डरी सहमी शर्माती हुई घर की कुछ महिलाओं के साथ अपने कमरे में चली गई। कुछ समय बाद मुझे पता चला कि मेरे सास-ससुर की आयु मेरे दादा दादी जितनी है और मेरे जेठ और जेठानी की आयु मेरे मम्मी पापा जितनी है। मेरी आयु मेरे जेठ के बच्चों जितनी थी। मैंने तो अभी ठीक से जाना ही नहीं था कि उन महिलाओं में से किसके साथ मेरा कौन सा रिश्ता है? बातों से समझ में आया कि उनमें से एक मेरी ननंद और एक मेरी जिठानी थी। उन्होंने मुझे कमरे में बिठाया और बाहर चली गई। कुछ देर बाद में मेरे पति कमरे में आए। मैंने उनको ध्यान से देखा। उनकी आयु 39 वर्ष थी। मेरा हृदय अंदर से कांप उठा। मन में एक प्रश्न उठा कि अगर मेरे पापा जिंदा होते क्या तब भी यही होता? लेकिन मैं खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रही थी।
मैं हैरान हो गई कि हमारे घर वालों के साथ धोखा हुआ है। 22 साल दूल्हे की उम्र बताई थी। फिर मेरी सुहागरात का समय आया। उस समय मुझे महावारी शुरू हो गई। एक तो शादी की इतनी सारी रस्मों के कारण हुई थकान और ऊपर से महावारी के दर्द के कारण मुझे रोना आ रहा था। मैंने मेरे पति को बहुत रोका। विनती करी। लेकिन वें नहीं माने। उन्होंने जबरदस्ती मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाया। मेरे पति संतुष्ट होकर सो गये। मेरी आंखों में बहुत सारा पानी था। मैं पूरी रात बैठी बैठी रोती रही। मेरे जीवन में यह दुख कम था जो अगली सुबह मैंने सुना कि इन लोगों ने मुझे ₹200000 में खरीदा है। जिनमें से डेढ़ लाख रुपए मुंहबोले मामा ने रखें ।₹50000 मेरे घर वालों को दे दिए गए।
मेरे अंदर मरने के ख्याल आते गए। लेकिन मैं मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मैं कमजोर पड़ गई। प्राणों का मोह था मेरे मन में।
मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्या-" मैं कोई वस्तु हूं जिसे खरीदा गया?"
फिर मैंने ध्यान देना शुरू किया तो मुझे पता चला कि इस घर में सबसे ज्यादा मेरी ननद की चलती है। ननंद के तीन लड़कियां हैं ,बुड्ढे और बीमार सास-ससुर है और पति भी है जोकि पेंटिंग का काम करते हैं। फिर भी मेरी ननंद अधिकतर अपने मायके में ही पड़ी रहती है। मेरी ननद की आयु 40 वर्ष के लगभग है फिर भी लड़के की चाहत में लड़कियों की सेना तैयार कर रही है।
मेरी मेहंदी भी नहीं उतरी की पूरे घर के कामों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी गई। मैं पूरे घर का काम करके खाना खाती अगर थोड़ी सी भी गलती हो जाती तो मेरी ननंद मुझ पर चिल्लाती।
मन में एक प्रश्न उठा कि-" अगर मुझसे कोई गलती होती है तो प्यार से समझाया जा सकता है। अगर डांटना ही है तो मेरे सास- ससुर और पति भी डांट सकते हैं ननंद का क्या अधिकार है? जब वह मेरे साथ ऐसा करती है तो उसे कोई रोकता क्यों नहीं? अगर मुझे खरीदी हुई समझा जाये ,तो भी उसके पैसे मेरे ससुर और पति ने दिए होंगे ननंद का मुझ पर इस तरह चिल्लाने का कोई अधिकार नहीं है।"
ऐसा सोच कर मैं रो रही थी इतने में मुझे मेरे कंधे पर किसी के स्पर्श का एहसास हुआ। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मेरी जेठुती प्रियंका मेरे पास खड़ी थी। मुझे देखकर वह हैरान हुई। उस दिन हम पहली बार मिले थे। सच कहो तो मेरी शादी नहीं हुई थी शादी के नाम पर मांग में सिंदूर और गले में माला डाली थी। प्रियंका इन सब से नाराज होकर इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई थी।
प्रियंका ने कहा-"जो हुआ है उसे तो मैं नहीं बदल सकती। रिश्ते में आप मेरी चाची लगती हो। आप मेरी मां समान हो लेकिन हमारा व्यवहार हमेशा एक दोस्त के जैसे रहेगा। आप मेरी छोटी बहन हो।"
मेरे पतिदेव ने मुझे फ़ोन दिलवाया। शायद उनको डर था कि कहीं यह भाग ना जाए, क्योंकि उनकी शादी बुढ़ापे में जो हुई थी।मेरी शादी को मुश्किल से एक महिना हुआ था कि एक सुबह मुझे उल्टी आयी। दस पन्द्रह दिन यही हालत रही। सासु मां ने अंदाजा लगा लिया कि उनके घर पोता आने वाला हैं। किसी ने भी डाक्टर के पास जाना जरूरी नहीं समझा। खैर में पूरे घर का काम करती। प्रियंका सबसे छुपाकर मेरे लिए कभी चाकलेट, कभी कुल्फी तो कभी फ्रुटी की बोतल और कभी फल वगैरह लाती। उसने मुझे कहा-" समय पर खाना खाया करो, जल्दी सोया करों। कुछ खाने का मन हो तो चाचाजी को बोल दिया करो।"
मैं अब रात को जल्दी सो जाती थी। मेरे पति दस बजे घर आते थे। उन्होंने मुझे सोते देखा तो चुपचाप सो गये। मैं दूसरे दिन भी जल्दी सो गई। अगले दिन मेरे पति मुझसे उखड़े- उखड़े से रहे, पर मुझे इसका कारण पता नहीं चला। तीसरे दिन फिर जल्दी से सो गई। मेरे पति आए उन्होंने मेरा कंधा पकड़कर खड़ा किया। मैं हड़बड़ा कर उठी। मेरे पति ने मुझे कहा-"तीन दिन से देख रहा हूं, तुम्हारा रोज-रोज का नाटक बर्दाश्त नहीं होता। हमारे यहां सभी दस बजे के बाद सोते हैं। तुम इतना जल्दी कैसे सो गई?"
मैं पति का यह रूप देखकर डर गई। मैं रोते हुए बोली-"मुझे दिन में बहुत थकान महसूस होती है, सिर दर्द होता है। मैं पूरे घर का काम करके खुद खाना खाकर सोती हूँ।"
मेरे पति ने कहा-"वो सब मुझे नहीं पता। कल से दस बजे के बाद सोना।"
अब में अपनी किस्मत को कोसने लगी और दस बजे सोने लगी। प्रियंका ने बताया नींद पुरी होनी चाहिए तो मैं दिन में सोकर नींद पुरी करती।
मेरा इस अवस्था में अलग -अलग चीजें खाने का मन करता। मेरे परिवार में मांस मछली का सेवन किया जाता था लेकिन यहां आने के बाद मैंने सब छोड़ दिया। मैं मेरे पति से शाकाहारी चीजों की मांग करती। कभी-कभी तो ला देते, कभी बोलते पैसे नहीं हैं इन चीजों के लिए पैसे लगते हैं। फ्री में कुछ नहीं मिलता। मेरे मन में प्रश्न उठता कि पति को तो भर्त्ता कहा जाता है। यह कैसा भर्त्ता है जो खाने की जरूरत भी पुरी नहीं कर सकता?
कभी-कभार जब ननद अपनी ससुराल जाती तो मेरे लिए पानी पुरी, रसगुल्ले, मिर्ची बड़ा, फल वगैरह ला देते। पर जब भी ननद को पता चलता तो कभी मुझे कभी मेरे पति को डांटती रहती कि-"इतना सब खर्च करने की क्या जरूरत है? खाना खाएंगे बाहर निकल जाएगा, पैसे इकट्ठा करोगे तो काम आएंगे।"
यह सब सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। धीरे धीरे मेरी डिलीवरी का समय नजदीक आया। पर मुझे इस अवस्था में भी खाना खाने को नहीं मिला। एक दिन मुझे बहुत भयंकर दर्द हो रहा था। मेरे पति अपने स्कूटर से मुझे अस्पताल लेकर गए। मैं पूरे रास्ते बहुत ही अनकंफरटेबल होती रही। जब डॉक्टर को इस बात का पता चला तो उन्होंने मेरे पति को जबरदस्त डांट लगाई।
हमारे घर में गाड़ी नहीं है- पति ने कहा।
डॉक्टर ने कहा -"किसी की किराए पर ले लेते।"
मेरा बड़ा मन था कि अपने बच्चे को पहली बार थोड़ा सा गुड़ या शहद चटाने की रस्म होती है। वह रस्म में करूं। लेकिन मैं होश में आई तब तक मेरी ननद यह सब कर चुकी थी। उसके बाद में बहुत ही रोई। यह मेरा सपना बन गया था। जल्दी ही मैं घर आई। मेरी डिलीवरी को मुश्किल से 15 दिन हुए थे कि मेरी ननद घर के काम करने का गुस्सा अपनी छोटी-छोटी बच्चियों पर निकालती।
मेरी ननद मेरा सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुकी थी। ननद के तीन लड़कियां हैं और लड़के की चाहत में लड़कियों की फौज तैयार कर रही है। उसके ससुराल में सास ससुर बीमार है। उसका पति अच्छा खासा कमाता है और पेंटर है। उसमें इतनी सद्बुद्धि नहीं है कि लड़कियों की अच्छी परवरिश करें पढ़ाई-लिखाई कराएं। अपने सास-ससुर की सेवा करें। पति थका हारा आता है तो उसके लिए खाना आदि तैयार रखें। बल्कि छोटी-छोटी बातों पर बच्चियों को डांट देती है कभी कभार जोर से मार भी देती है। ऐसा नहीं है कि अगर पीहर में भी आए तो शांति से हंसते खेलते आए। उसकी आयु 40 वर्ष है। फिर भी उस में अक्ल नहीं है ना ही उसके माता-पिता उसे कुछ कहते हैं। मुझे ठीक से खाना नहीं मिलने के कारण मेरे स्तनों में दूध नहीं आता था। मैं तो फिर भी बर्दाश्त कर लेती लेकिन जब मेरा बच्चा मेरे स्तनों को अपने मुंह में लेता, तब उसके मुंह में कुछ नहीं आता था। फिर यह मेरी आंखों में देखता मैं अपने स्तनों जोर से दबाती । कभी-कभी थोड़ा सा भी दूध निकलता तो मैं बहुत खुश हो जाती। जब कभी बहुत कोशिश करने पर भी दूध नहीं निकलता और मेरा मासूम बच्चा अपने मुंह में अंगुलि डालकर चुसता रहता और मुझे टुकुर-टुकुर देखता रहता। तब में उसकी मासूम आंखों का सामना नहीं कर पाती। द्रोणाचार्य भी अपने बेटे को दूध नहीं पिला सकने की स्थिति में आटा घोलकर पिला देते थे। मैं तो वह सब भी नहीं कर सकती , क्योंकि मेरा बच्चा आटा नहीं पचा पाता था। मेरी इस दुर्दशा का कारण मेरी ननद और पति थे।
अब मैंने भी उसे घर से निकालने की ठान ली। अब आए दिन मैं बीमार होने का नाटक करने लगी। जिससे कि अधिकतर काम ननद को ही करना पड़ता।
ननद ने आव देखा न ताव तुरंत अपना बैग पैक करके ससुराल चली गई।
खैर मेरा बेटा प्रियांशु 5 महीने का हो चुका था। कभी-कभी यह रोने लगता तो मैं सारे काम छोड़ कर इसे चुप कराने के लिए दौड़ती। तब मेरी सास और ननद आपस में बातें करती थी यह अपने बेटे को बिगाड़ कर रखेगी। ज्यादा गोदी में लेने से छोटे बच्चे बिगड़ जाते हैं। हमने भी बच्चे पैदा किए हैं हम तो कभी उन्हें इतना गोद में नहीं लेते।
एक दिन दोपहर को मैं अपने कमरे में बैठी रो रही थी। इतने में प्रियंका आई। उसने मुझे बातों ही बातों में मेरे हुनर के बारे में पूछा।
मैंने उसे बताया-"मैं खाना बहुत अच्छा बना लेती हूं।"
उसने मुझे यूट्यूब पर काम कैसे करना है ? सब सिखाया।
मैं अपनी सास ननंद पति आदि सभी सदस्यों से छुप कर काम करने लगी। कभी -कभार घर का काम और बच्चे को संभालना मेरे लिए मुश्किल होता था। मैंने इस काम को छोड़ने का फैसला कर लिया।
जब मैंने प्रियंका को बताया तो उसने बहुत समझाया लेकिन मैं नहीं मानी।
थोड़े दिन बाद मेरे ससुर प्रियांश के लिए एक खिलौना लेकर आए। प्रियांश खिलौने के साथ खेल कर बहुत खुश था। सभी उसके साथ खेलकर प्रसन्न थे। इतने में मेरी ननद का फोन आया। बातों ही बातों में उसे इस खिलौने का पता चला। फोन स्पीकर पर था। उसने मेरे ससुर से कहा कि आप इस तरह उस पर पैसे लुटाओगे तो वह दिन दूर नहीं जब यह आप सब पर राज करेगी। मेरे सास ससुर या कोई उसे कुछ नहीं बोला।
उस दिन मैं रितिका नहीं थी। अपने बेटे प्रियांश की मां थी। अब मुझे अपने बेटे के लिए लड़ना था। एक मां अपने बेटे के लिए कुछ भी कर सकती है। ननद की यह बात मुझे अंदर तक घायल कर गई। मैंने फिर से यूट्यूब पर काम किया। खाना बनाती तो उसका वीडियो अपलोड कर देती। आज मेरे बैंक के खाते में ₹15000 आए हैं
मैं बहुत खुश हूं। अब मुझे कुछ भी चाहिए होगा तो पति और ननद का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। तभी मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे अपने लिए पायल लेनी थी। मैंने अपनी सास को सारी बात बताई। वे बहुत परेशान हुई लेकिन पैसों की बात सुनकर खुश हो गई। मैंने बैंक में जाकर ₹10000 निकाले। 6000 में दो पायल की जोड़ियां ली। एक अपने लिए और एक सासु मां के लिए।
₹4000 में मैंने अपने और प्रियांश के लिए बहुत सारे अच्छे-अच्छे कपड़े लिए और उसके लिए एक चांदी का छोटा सा चम्मच और एक कटोरी का भाव सुनार से पूछा। फिलहाल के लिए मेरे पास इतने रुपए नहीं थे। उनकी कीमत ₹5000 थी। मेरे पास केवल 15 सो रुपए बच्चे थे। मैंने एक मिठाई का डब्बा लिया ।
मैं खुशी-खुशी अपने घर आ गई। वह मिठाई का डिब्बा ससुर और पति के लिए था। मेरे पास अब केवल 1300 रुपए बचे थे। फिर मेरे दिमाग में आया कि मैंने अपनी शादी और प्रियांशु को रिश्तेदारों के द्वारा मिले हुए रुपयों को बचा कर रखा था। मैंने रुपयों को देखा। मेरे पास में साढ़े ₹4000 थे। मैंने उनको और अपने पास बचे हुए हजार रुपयों को आपस में मिलाया। आज मेरे पति को आने में 11:00 बज गए। उन्होंने मुझसे कहा-" अभी तक सोई नहीं।"
मैंने उनको सारी बात बताई। वे हैरान हुए। मैंने उनको मिठाई खिलाई और कहा कल हमें बाजार जाना है। प्रियांशु के लिए चांदी की चम्मच और कटोरी लेने के लिए अब से वह हमेशा खीर खाएगा। मेरे पति ने हामी भरी। मैं खुशी-खुशी सो गई, और मुझे अगले दिन के सुंदर सपने आने लगे।
