आफ्टर शेव

आफ्टर शेव

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चतुर्थवर्गीय कर्मी की नौकरी करते हुए मिश्रा जी परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते साठ की उम्र में सत्तर के दिखने लगे थे। उपलब्धि ये कि बेटी का विवाह अच्छे परिवार में हो चुका था और बेटा सरकारी नौकरी में पदाधिकारी का पद चुका था, मलाल ये कि अनुशासनप्रिय होने के कारण पिता पुत्र में संवादहीनता आ गई थी जो कभी-कभी दोनों को भावहीनता भी लगती। पिता ने यथासंभव पुत्र की पढ़ाई में योगदान दिया था तो पुत्र ने भी ट्यूशन पढ़ा कर उनकी मदद की थी।

आज बेटे का पहला वेतन आया था। माँ, बहन, बहनोई, भांजी सबके लिए कुछ ना कुछ आया था। पिता के पांव छुए पर खामोशी बरकरार रही।

दूसरे दिन सुबह की सैर के बाद रोज की तरह शेविंग किट निकाला तो आफ्टर शेव की शीशी देख पहले चौंके फिर भीनी-सी मुस्कराहट चेहरे को जवान बनाने लगी। यकायक मन बीस साल पीछे चला गया था। 6 वर्षीय पुत्र की उत्सुकता शांत करने हेतु उसे अपने साइकिल पर बिठा कर कार्यालय दिखाने ले गए थे। बड़े बाबू की मदहोश कर देने वाली खुशबू का राज जब उन्होंने डरते-डरते पूछा तो उत्तर मिला-क्या करोगे जानकर ? लेने की हैसियत नहीं है तुम्हारी।

खिड़की के पीछे खड़ा पुत्र टुकुर-टुकुर उसे देख रहा था।

आज भी मुस्कुराता हुआ पुत्र, पिता की खुशबूदार मुस्कुराहट को टुकुर-टुकुर देख रहा था।


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