150 रुपए का फोल्डर
150 रुपए का फोल्डर
बस वहीं गर्मी की चिलमिलाती धूप थी जब रजत घर से कुछ पैसे लेकर निकला। वैसे तो कोई खास सुनता नहीं था उसकी घर में लेकिन बस दादी थी जो उससे बहुत प्यार करती थीं। बस फिर क्या था दादी को मनाया, थोड़ा नाटक किया कि कुछ पैसे चाहिए और दादी से 150 रुपए लेकर निकल पड़ा रजत अपने घर से ।
घर पर कहा तो यही था उसने कि जॉब का इंटरव्यू हैं और अपनी मार्कशीट्स, सर्टिफिकेट्स दिखाने के लिए एक फोल्डर लेना हैं जो बस 150 रुपए का है। जैसे हर किसी के घर में कुछ ऐसे ठेकेदार होते हैं जो बताते हैं कि कहाँ जॉब करनी हैं, कहाँ नहीं करनी हैं ऐसे ही रजत की ज़िंदगी में भी कुछ ठेकेदार थे। अब चाहे वो ठेकेदार साथ की दुकान वाले भैया हो या फिर दिल्ली वाले चाचा जी का बड़ा लड़का जो अभी-अभी ग्रेजुएट हुआ था। सब अपनी ज्ञान की दुकान लिए तैयार थे कि अब आएगा ऊँट पहाड़ के नीचे। बस इसी कश्मकश में वो चलता जा रहा था अपने इंटरव्यू के लिए। रास्ते में चलते हुए कभी-कभी उसे ये ख्याल भी आता की जब नौकरी लग जाएगी तभी बताऊंगा घर पर नहीं तो बेइज्जती हो जाएगी और वो साथ की दुकान वाले भैया खुश हो जायेंगे जो कहते रह गए कि मेरी दुकान पर ही नौकरी कर ले और 5000 रूपए ले लियो महीने के।
लेकिन रजत तो अपनी ही धुन में था, जा तो रहा था इंटरव्यू देने लेकिन ना तो अपने कपड़ों की सुध थी और न ही भूख प्यास की। जैसे ही रजत ने मेट्रो में कदम रखा, हज़ारों ख्याल उसके दिमाग में आने लगे कि नौकरी करनी ही क्यों हैं ? अब तक पढ़ा और सुना तो यही था लोगो से कि जो काम अच्छा लगे बस वही करना चाहिए। Passion को ही Profession बनाना चाहिए लेकिन आज तो कहानी ही अलग हैं। नौकरी इसलिए करनी हैं क्योंकि घर चलाने के लिए पैसे कमाने हैं, दादी का इलाज भी करवाना हैं, गुड़िया अब बड़ी हो गयी हैं उसकी शादी का भी सोचना है। इन सब विचारों के बीच ही रजत पहुँच जाता हैं पुरानी दिल्ली की मार्केट और ले लेता हैं अपने कागज़ात सँभालने के लिए एक फोल्डर, बस 150 रुपए का फोल्डर। सजा कर अपने कागज़ात रजत आखिरकार पहुँच ही गया इंटरव्यू देने, अब क्योंकि ज़िंदगी का पहला इंटरव्यू हैं इसलिए रजत थोड़ा घबराया हुआ भी था लेकिन साथ-साथ यह भी सोच रहा था कि अब ग्रेजुएट हुआ हूँ अच्छे नम्बरों से तो नौकरी अच्छी मिल ही जाएगी।
जैसे ही रजत कंपनी के अंदर पहुंचा तो वहां देखता हैं कि पहले से ही 50 कैंडिडेट्स बैठे हुए हैं और नौकरी मिलेगी सिर्फ 2 ही लोगो को। रजत ने जब वहां कुछ लोगो से बात की तो उसे पता चला कि सभी को पैसों की बहुत ज़्यादा जरूरत हैं, किसी-किसी के घर में तो चूल्हा भी कभी-कभी जलता है। रजत बेचारा बहुत सीधा-साधा, इतना सब सुनने के बाद तो थोड़ा घबरा सा गया, इतना लम्बा सफर तय करके वैसे भी वो यहाँ तक पहुंचा था, अब बाहर उसकी नज़र गयी तो प्यास बुझाने के लिए वो निम्बू पानी पीने के लिए बाहर चल दिया।
रजत के साथ एक और लड़का भी वहाँ था जो निम्बू पानी पीते-पीते अपनी अम्मा से बात कर रहा था, बात क्या दरअसल वो लड़का तो रोते हुए अपनी अम्मा से कह रहा था कि अम्मा जो मैंने कल फोल्डर लिए था वो रास्ते में फट गया, अब मैं कैसे जाऊँगा अपना इंटरव्यू देने, दीदी ने घर पर समझाया भी था कि पहला इम्प्रैशन बहुत ज्यादा ज़रूरी होता हैं , अब अगर पहला इम्प्रैशन ही ख़राब हुआ तो मुझे ये नौकरी नहीं मिलेगी। यही कहते कहते वो लड़का बार बार सिसकियाँ भर रहा था। फिर क्या था रजत जी तो है ही उनके बगल में, रजत ने इतना सब सुना और अपना नया फोल्डर उस बेचारे लड़के को दे दिया और निकल पड़ा रजत वहां से अपने अनुमानों को कुचलकर, अपनी आशाओं पर पानी फेर कर और सोचता रहा नौकरी की ज़रूरत तो उसे भी थी लेकिन फिर उसे दादी की ये बात बार-बार याद आती रही कि ज़िंदगी में हमेशा इंसानियत सबसे ऊपर रखना फिर चाहे कुछ भी कमाना, कुछ भी खाना।
आज भी वो मस्तमौला निकलता हैं अपना बस्ता टाँगे और पानी की बोतल बैग में दबाये बस इसी सोच में शायद कोई उसे भी कभी तो नौकरी मिलेगी जहां वो अपनी इंसानियत को ज़िंदा रखकर काम करेगा।
बस यही थी उस 150 रुपए के फोल्डर की कहानी, जो कल किसी और का था, आज किसी और का है और कल किसी और का होगा।
धन्यवाद। जय हिन्द।
