ये सोचा ना था
ये सोचा ना था
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ढूंढने निकला मैं जब मंजिल को रास्ते बहुत थे, लेकिन जाना कहा है
ये सोचा न था।
चल पड़ा एक रास्ते पर, गिर कर संभल कर, पत्थरों से बचकर, लेकिन कांटे मिल जाएंगे
ये सोचा ना था।
बदल लिया रास्ता अपना बस कांटों को देखकर
चल पड़ा मैं वापस, लेकिन रास्ता भटक जाऊंगा
ये सोचा ना था।
मिल जाती मंजिल मुझे, चलकर कांटों के ऊपर
लेकिन जख्म भर जाते हैं
ये सोचा ना था।