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Mona Sharon

Abstract

3.8  

Mona Sharon

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ये दुनिया कितनी दुखी है पर लग

ये दुनिया कितनी दुखी है पर लग

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ये  दुनिया कितनी दुखी है पर लगती क्यों सुखी है !


कोई सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं पाता  |

कोई  कुछ नहीं  पाकर भी सब कुछ पा लेता है ||

कोई ज़िन्दगी चाहता पर ज़िन्दगी उसे नहीं चाहती |

कोई मौत चाहता है पर मौत  उसे नहीं आती ||


ये दुनिया कितनी दुखी है पर लगती क्यों सुखी है !


कोई अपनों को पराया समझता है , पर अपने उसको पराया नहीं  समझते |

कोई परायों को अपना समझता है ,पर पराये उसको अपना नहीं समझते  ||

कोई जाती मकान बनाना चाहता है पर बनता नहीं है ,कोई मकान बेचना चाहता  है पर बिकता नहीं है |

कोई जग घूमना चाहता है पर धन नहीं है ,किसी के पास धन है पर मन नहीं है ||


ये दुनिया कितनी दुखी है पर लगती क्यों सुखी है !


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