STORYMIRROR

Preeti Mishra

Abstract

4  

Preeti Mishra

Abstract

वसंत न गुज़रे ठिठोली में

वसंत न गुज़रे ठिठोली में

1 min
451

अबकी बार बसंत ना कुछ रहे हैं

हंसी ठिठोली में कुछ तो नया कर जाए

अरे भाई कुछ नया हो।


मां के वीणा के रस हो भक्ति में,

जन के भावों की हो रंगोली

रंगोली हूं रंग बिरंगी डोली में।


बसंत में रंग बिरंगे फूलों का

खिलना पीली हरी धरती का सजना

बसंती रंग का मन में नई उमंग जगाना।


सागर से भी बुझ ना पाए प्यास

किसी की आशा एक बूंद से

हो जाती पूरी आस।


नर नारी पीले कपड़े पहने

पीली खिचड़ी खाई भोजन में विराम वारी

सेवर मांगे ज्ञान और बुद्धि मंदिर में।


शीत का हुआ अंत, बागों में हरियाली छाई

प्रकृति रंग बिरंगी हुई झूम रहे मानव और प्राणी

जा रहा आनंद आनंद अब की अबकी बार

बसंत ना बीते हंसी और ठिठोली में।


आमो बौर लगी, झूला झूले जूली

सखियां बागों में पीली पीली सरसों फूली खेत में

अबकी बार बसंत ना गुजरे हंसी ठिठोली में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract