STORYMIRROR

Tanya Gupta

Abstract

4.6  

Tanya Gupta

Abstract

वो वक्त

वो वक्त

1 min
482


उस वक्त की तलाश थी इस कदर,

कि जो नसीब में था वो भी गंवा बैठी थी,

चल दी पीछे पीछे

जीने का तरीका भुला बैठी थी।


बनावटी सी हो गई थी ज़िंदगी

खुद को मिटा रखी थी।

उस वक्त कि तलाश थी इस कदर,

कि जो हाथ मे था,

वो भी गंवा बैठी थी।


हँसती थी, रोती थी, गुस्सती थी

हर बात दिल पर छू जाती थी

न बोलना किसी से एक टक

अकेले ही रह जाती थी।


दिल कहां था दिमाग कहांं

कोई नही था सही जगह

गलती तो मुझसे बहुत बड़ी हुई

पर पछतावे के सिवा कुछ ना बचा।


उस वक्त की तलाश थी इस कदर

कि

जो पास था वो भी गंवा बैठी थी।

ज़िंदगी कुछ फुसफुसी सी लगने लगी,

कुछ अलगाव दिखने लगा।


साथ रहकर भी साथ नही हूँ,

उससे नाता ऐसा बेगाना रहा

छोड़कर अपनी मंजिल

दूसरों की राह अपनाने लगी,

डगमगा गए पैर

वापस लौटकर आना पड़ा।


सहारा मिला तो कइयों का

पर दिल को किसी एक ने छुआ

वो थी मेरी अंतरात्मा जो

साथ मेरे हरदम खड़ी

छोड़कर उसे अकेले चल पड़ी मैं

दूसरों के पीछे।


पैर जब फिसले मेरे तब,

ज़िंदगी का सही मतलब पता लगा।

उस वक्त की तलाश थी इस कदर,

कि जो खुद मे था वो भी गंवा बैठी थी।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Tanya Gupta

Similar hindi poem from Abstract