विवशता
विवशता


"हूँ कायर या कृतज्ञ मैं"
मैं हूँ उस परिवार से जहां कहानियों का अम्बार है
मैं हूँ उस परिवार से जहां पितृ सत्ता का वास है
और उस परिवार में मेरे पिता का अभाव है।
माता के संघर्ष से मिला मुझे शब्द ज्ञान है
और ये विवशता की मौन रहूँ , देखती अन्याय मैं ।
चौदह वर्ष शरण मिली और कहानियाँ,
तब भी सुनी और आज भी कहानियाँ ।
रोटी का क़र्ज़ उतारती, कर न सकी विरोध मैं ।
पर नहीं विश्वास मुझे, सुनी कहानियों पर।
देखा है, नहीं दिया पिछले इग्यारह वर्षों अधिकार कोई ।
नहीं करतीं विरोध ,करती हूँ मैं याचना,
हे पितृ तुल्य, हे पितृ देव ।
दे ना सकोगे अधिकार, वो जताना पड़ता है।
कम से कम दो अभयदान उस वन विहारीणि को।।
नहीं कायर, हूँ कृतज्ञ मैं!!