वीरों का बसंत
वीरों का बसंत
मेरा मन कहता कुछ बात करूँ जो खड़े है साधे दुख अनन्त।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
मेरे मन में रहा कोई भेद नहीं उन वीरों की महिमा सुखंत।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
घर बार छोड़ के सीमा पर वो गोली खाते वीर संत।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
कोई पहरेदार है रातों का और देश प्रेम में बजे शंख।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
कोई लिए चित्र अपनी माँ का और घूर रहा है शून्य अंक।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
कोई जूझ रहा तकलीफों से और प्रेम से दूरी है अनन्त।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
कोई भरोसा न इस ज़िन्दगी का कब हो जाये करुण अंत।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।
कोई चिट्ठी पढ़ के अपने घर का रोशन दान देखे दुखांत।
एक आस लगा के बैठा हूँ मेरे वीरों का हो ये बसंत।