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Kunal kumar

Inspirational

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Kunal kumar

Inspirational

वीर रक्ष

वीर रक्ष

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वीर उठो अब जाग चलो

कुछ करके फिर तुम को

दिखलाना है

अभ्यास प्रशिक्षण बहुत हुए

घनघोर समर में जाना है

             

अब तक तो सीमाओं पर तुमने

अपना शौर्य परिचय दिया।

पर उस दुष्ट, अधम पापी ने

इस बार हृदय पर घात किया।।


मैत्री का पक्ष लिया अब तक

पर बाण हृदय पर कौन सहे।

सीमा की गरिमा लांघ चलो

मेंहदी का फीका रंग कहे।।

             

घर में उनके घुस कर के तुम को

इस बार प्रहार कर जाना है

मैत्री की जिसको परख नहीं

उसको समूल मिटाना है।।


अब और प्रतिक्षा मत करना

कि "पुलवामा" वो दोहरा दे।

फिर कोई रतन शहीद बने

ऐसा ज़ख्म ना गहरा दें।।

            

अब उनको औकात दिखाना है,

चाहे "बालाकोट" दोहरा देना।

फिर उठ के न खड़ा हो सके,

घाव कुछ ऐसा गहरा देना।।


उन आँखो की भीगीं पलकें

वो यारो की बंजर महफिल,

उस विधवा का सुना मस्तक

उस माता का खाली आँचल,

उस कटे हुए सर का बदला 

लेना तुम होके अविचल

दया ओढ़ मत रूक जाना तुम

चाहे रक्त बहे अविरल।।

          

अब जो आतंक सामने आये

मौत की नींद सुला देना।

अपने असीम भुजा-बल से

उनकी जड़े हिला देना।।


कायरता की भी अपनी सीमा है।

युद्ध की भी गरिमा है।

वो छुप के घर मे आते है

निर्दोष लहु बहाते हैं।।

            

दम है तो आमने-सामने आये

इस बार आर या पार होगा।

जो हश्र किया किया है चार बार

फिर से पांचवी बार होगा।।


अंतर केवल इतना होगा

ये युद्ध आखिरी बार होगा।

सन् 47 के पहले का भारत

नक्शे पर फिर एक बार होगा।

नक्शे पर फिर एक बार होगा।।

           


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