विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी जीवन
वो पहला पल था मेरा
जब कंधों पर स्कूल वाला
बैग था मेरा।।
हंसी ठिठोली की वो टोली
याद अब भी आती है
2 रूपए में मिलती थी
मिठी टिकिया गोली।।
आंखों में ख़ुशी
मन में भरे थे उमंग
खेलनें में अच्छा लगता था,
स्कूल का वो घांस वाले आंगन।।
देर से जाने में
हाथों में छड़ी कि मार पड़ती थी,
घर लौटने पर
मां बहुत प्यार दुलार करती थी।।
साहब जब 2 का पहाड़ा
याद नहीं हुआ करता था ,
सच कहता हूं साहब
मार बहुत पड़ता था।।
बारिश के दिनों में
पैर किचड़ों से लतपथ
कभी स्कूल पहुंचे
कभी बिच रास्ते से ही लौट आए।।
बिटु-टुडू