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Kavita Pareek

Inspirational

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विधवा नहीं वीरांगना हूं मैं

विधवा नहीं वीरांगना हूं मैं

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आओ मां

आज मेरा श्रृंगार कर दो

पोंछ ये नकली सिंदूर

रक्त जो बहाया है रण भूमि में मेरे प्रियतम ने

उसी रक्त से मेरी मांग भर दो

सुनो मां

गूंज रहा... "जिन्दाबाद - जिन्दाबाद"

तो कैसे मैं उसका जाना स्वीकार करूं

विधवा नहीं वीरांगना हूं मैं एक वीर की

तो रोक अंसुवन की अविरल धार

उठा रज उस रणभूमि की

और मेरे सोलह श्रृंगार कर दो

आओ मां

आज मेरा श्रृंगार का दो

क्योंकि....

मैं विधवा नहीं ....

वीरांगना हूं मेरे प्रियतम की मेरे वीर की

मैं विधवा नहीं..... वीरांगना हूं....


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