बिन छुए ...
बिन छुए ...
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बिन छुए ही ..
वो आत्मा मेरी छू गया
सात फेरे तो जिस्मों तक सिमटे रह गए
जाने क्या था ... क्या है ...
उस एहसास में
वर्षों पर चंद महीने भी भारी पड़ रहे ..
गठबंधन भी तेरे मोह पाश से मुक्त न करवा पाया
जाने कैसे कवि
बिन छूए ही ...
वो आत्मा मेरी छू गया.
