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Vipul Bais

Abstract Children

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Vipul Bais

Abstract Children

वह याद आती है ।

वह याद आती है ।

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पहली बारिश के बाद,

उसकी सौंधी सी महक, सांसो मैं समां जाती थी !


खेल के जब भी घर आता था, ना जाने कब कमीज या पतलून से वह चिपट जाती थी !

जुराबें और जूते तो शायद ख़ास यार थे उसके,

चुप चाप उनसे मिलकर, अम्मा से वह मार भी खिलाती थी !


कितने खिलोने उससे बनते थे, कितने खेल उस पर सजते थे !

खुद भी खेलती थी शायद या कभी खुद अपने मैं ही खेल बन जाती थी !


कभी गारा तो कभी रेत-गिट्टी, पत्थर दगड ,मुरुम बन कर इतराती थी !

चोट लगने पर सयानापन दिखते हुए, वह काली मट्टी मलहम भी बन जाती थी !

मुल्तानी के तो शौक ही अजीब थे, चहरे पर चिपक जाती थी ।


आज भी, वह मिट्टी याद आती है,

उस मिट्टी की खुशबू याद आती है !!


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