वह याद आती है ।
वह याद आती है ।
पहली बारिश के बाद,
उसकी सौंधी सी महक, सांसो मैं समां जाती थी !
खेल के जब भी घर आता था, ना जाने कब कमीज या पतलून से वह चिपट जाती थी !
जुराबें और जूते तो शायद ख़ास यार थे उसके,
चुप चाप उनसे मिलकर, अम्मा से वह मार भी खिलाती थी !
कितने खिलोने उससे बनते थे, कितने खेल उस पर सजते थे !
खुद भी खेलती थी शायद या कभी खुद अपने मैं ही खेल बन जाती थी !
कभी गारा तो कभी रेत-गिट्टी, पत्थर दगड ,मुरुम बन कर इतराती थी !
चोट लगने पर सयानापन दिखते हुए, वह काली मट्टी मलहम भी बन जाती थी !
मुल्तानी के तो शौक ही अजीब थे, चहरे पर चिपक जाती थी ।
आज भी, वह मिट्टी याद आती है,
उस मिट्टी की खुशबू याद आती है !!
