*ऊँची-ऊँची इमारतों में* *सिमटे-सिमटे लोग सभी*
*ऊँची-ऊँची इमारतों में* *सिमटे-सिमटे लोग सभी*
चारों तरफ धुंध है छाई,
सूरज दिखता कभी-कभी।
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
सिमटे-सिमटे लोग सभी।।
ठंडी-ठंडी हवा चले जब,
सभी सहम सा जाते हैं।
काँप-काँपकर बूढ़े बच्चे,
ऋतु यह सर्द बिताते हैं।।
धूप कभी जब मिल जाती है,
राहत पाएँ सभी तभी।
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
सिमटे-सिमटे लोग सभी।।
सूनी-सूनी गलियाँ लगतीं,
सर्दी से सब काँप रहें।
कहीं अँगीठी कहीं कोयला,
सभी जला के ताप रहें।।
सर्द भरे इस मौसम से अब,
हुआ प्रभावित बचपन भी।
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
सिमटे-सिमटे लोग सभी।।
वृक्ष काटकर महल बनाते,
शृंगार धरा का छीना।
ज़हर हवा में घुली है ऐसे,
कठिन हुआ अब तो जीना।।
मिलकर धरती स्वर्ग बनाएँ,
आओ प्रण लें आज अभी।
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
सिमटे-सिमटे लोग सभी।।