उठो आगे बढ़ो
उठो आगे बढ़ो
हौसलों के आगे किसी की क्या औक़ात है
गिरे हो तो सम्भलो स्वयं अभी शुरुआत है..
मुश्किलों का अँधेरा कब तलक ही रोकेगा
उठो आगे बढ़ो कुछ पलों की ही ये रात है..
ज़रा भी अच्छा नहीं है उफान-ए-अहम
मंजिलों से मुकम्मल न अभी मुलाक़ात है..
हर ख्वाब-ख्वाहिश सजेगी मिलेगी ख़ुशी
अग़र शीश पर आशीर्वाद-ए-माँ-तात है..
भरोसा करिए सदा ही स्वयं के हाथों पर
बिन मेहनत मिलता जो वो तो जकात है..
अकेले नहीं है एकांकी हो गए हम सखी
ख़ुद में ही ख़ुद की ख़ुद से तहकीकात हैं..
बेफ़िक्र हो बढ़ो अपनी मंज़िलों की तरफ़
बेशक बिखरे-बिखरे सभी ताल्लुक़ात हैं।