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NEHA Jha

Abstract

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NEHA Jha

Abstract

उम्मीद

उम्मीद

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मेरे उम्मीदों के इंद्रधनुष को किसी

क्षितिज की दरकार नहीं,

ये तो यूं ही उग आते हैं मन के किसी कोने में,

इन्हें किसी दुनिया की ज़मीं स्वीकार नहीं,


बिखेर जाते हैं ये रंगीन सपनों के गुलाल,

बना जाते हैं मन की आसमां को रंगीन और खुशहाल,

कभी उड़ चलतें हैं ऊंचे गगन में पंख पसारे,

परों पे आशाओं के रंगो को सजाएं,


हवा के साथ अठखेलियां खेलते,

ऊंचे गगन को छूने की चुनौती देते,

इन्हें न थकने का ग़म न गिरने का डर,

ये तो बस उर चलतें हैं हवा के झोंको के संग,


तितलियों की तरह घूमते हैं ये चमन चमन,

चूरा लेते हैं बागियों से उनके फूलों के रंग,

सपनों को सजा देते इन रंगों के संग,

छिड़क देते उनपर फूलों की महक ,


इन्हें न टूटने का डर न जलने की चूमने,

बह चलतें हैं ये नदियों के संग,

घोल जातें उसमें अपनी मधुरता का भंग,

घूमते हैं ये नगर - नगर हर डगर - डगर,


जिंदा कर जाते हर गली- गली हर शहर- शहर,

इन्हें न किसी बन्धन का डर न दुनिया की फिकर,

हर सुबह निकलते हैं ये सूरज के संग,

दिन भर छुपन छुपाई खेलते बादलों के संग,


पकड़े जाते ही बरस पड़ते इस ज़मीं पर,

जिंदगी भर जाते हर पत्ती हर शाखाओं पर,

थक जाते ही ओढ़ लेते चांदनी की रेशमी चादर,

फैला देते अपनी रौशनी इन काली रातों पर,


इन्हें न बूझने का डर न खोने का ग़म,

ये तो बस इंतजार करते कब होगी नई सहर,

मेरे उम्मीदों के इंद्रधनुष को

किसी क्षितिज की दरकार नहीं,


ये तो यूं ही उग आते हैं मन के किसी कोने में,

इन्हें किसी दुनिया की ज़मीं स्वीकार नहीं।


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