उमड़ रहा हो जब भीतर सागर
उमड़ रहा हो जब भीतर सागर
उमड़ रहा हो जब भीतर सागर
और ढलने लगे जब मन का दिवाकर
शोर मचाए जब हर अंजान डर
हो जब संशय वाली पहर।
दिखे ना तुम को आगे कुछ भी
धीरज रखना उस पल तुम
हाथ पकड़ के साहस का
चल देना बस उस पल तुम।
माना बाकियों से वक़्त तोड़ा
तुम्हें ज़्यादा लगा है
भटकते-भटकते
यहाँ तक आना पड़ा है।
पर कहो जो अगर
अब लौट गये यहाँ से
तो कौन सुनेगा कि
वक़्त बेरहम था तुम्हारे साथ।
करेगा हमदर्दी तुमसे
थामके तुम्हारा हाथ,
उल्टा लोग कायर कहेंगे,
कहेंगे कि वो देखो
यह वह इंसान जा रहा है
जो आधे रास्ते से लौट आया था
बिना हारे हारकर आया था।
कहो क्या सुन पायोगे ये सब तब
कहो क्या सह पायोगे ये सब तब
तो ल ड़ोऔर बढ़ो।
भले ही अंत मे पहुँचे
पर पहुँचेंगे ज़रूर
उमड़ रहा हो जब भीतर सागर
और ढलने लगे जब मन का दिवाकर।
शोर मचाए जब हर अंजान डर
हो जब संशय वाली पहर
दिखे ना तुम को आगे कुछ भी
धीरज रखना उस पल तुम।
हाथ पकड़ के साहस का
चल देना बस उस पल तुम !
