उड़ना चाहती हूँ
उड़ना चाहती हूँ
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उड़ना चाहती हूँ
मैं नारी,एक अबला कहकर
लोगो ने कैदी बनाया दिया मुझे
समाज रूपी वाड्यम्बर पिंजरे में
और कर दिया व्याह मेरा छोटी उम्र में ,
और उलझा दिया संसारिक माया में
मैं नारी, अधूरे ख़्वाबो के संग कैद,
जब जब आकाश की ओर निहारती हूँ
तब तब भाव - विभोर हो उठती हूँ मैं ,
जैसे बादलों से हो गहरा रिश्ता मेरा
मानो मुझे अपने पास बुला रही है और
सदियों पूरानी कहानी बताना चाह रही हैं,
मैं नारी, उड़ना चाहती हूँ
इस पिजंरे से निकल कर ,
चिड़ियों की भाँति विचरना चाहती हूँ
अपने ख़्वाबो की उड़ान भरना चाहती हूँ ,
मैं नारी, नहीं हूँ अबला
दुनिया को दिखाना चाहती हूँ
मैं खुले आकाश में उड़ना चाहती हूँ |