तू क्यों घबराता है...
तू क्यों घबराता है...
सूरज तू ढला ,
सुबह फिर निकला,
इंसान तू फिर भी नहीं संभला ।
बादल भी नहीं रोक पाये इसकी चमक ,
ग्रहण की भी नहीं हो पाई इतनी ज्यादा हिमाकत,
क्योंकि यह इतना होने के बावजूद नहीं घबराता है।
तू क्यों घबराता है..
दुख भी छट जायेगा बादल की तरह बरसकर ,
मन भी संभल जायेगा ग्रहण के तमस से निकलकर ,
तू ढल, मगर फिर निकल ,
मन कर दृढ़, तन कर सुदृढ़,
तू झुक सम्मान में,
मगर दुख के आगे तन - तन के खड़ा हो,
तू आखिर क्यों घबराता है ।
हर अंधियारी रात के बाद , सूरज रोशनी लेकर आता है।
मुश्किलें आएगी चली भी जायेगी ।
मत होने देना खुद को जरा - जरा ,
क्यों रहता है डरा - डरा |
ये सब तुझको कुछ ना कुछ सबक दे जायेंगे ,
बेशक तुम कुछ क्षण को स्तब्ध हो जाओगे ,
मगर जिंदगी भर का पाठ पढ़ा जायेंगे ।
हाँ , क्षण भर डगमगाएग
ा तेरा स्वाभिमान,
मत समझना इस से होगा कम तेरा मान,
दृढ़ रखना अपना मकसद,
इससे तू उठेगा भी , संभलेगा भी।
मिलेगा पूरा सम्मान, होगी स्वाभिमान में वृद्धि
मिलेगी मंजिल, पूरा होगा मकसद और बढ़ेगी जीवन की समृद्धि।
बस तू नित्य करता रहे करम,
मत छोड़ अपना धरम ,
तू क्यों घबराता है ।
सांझ ढलती है , सवेरा भी आता है ।
तू भी ढल,
मगर फिर निकल,
इंसान तू अब भी संभल ,
मत समझ अपने को विफल ।
गिर.... फिर उठ....
गिर, फिर उठ......
मत भूलना बार बार उठने को,
जिन्दगी में कुछ नहीं इसके बिना सम्भलने को।
मत रोना,
अपने रोने का रोना,
मत समझ अपने को इनसे चूर चूर होकर टूटने वाला खिलौना।
तू आखिर क्यों घबराता है,
रब भी तुझको आजमाता है।
एक दरवाज़ा बंद होता है ,
दूसरा स्वतः खुल जाता है।।
तू क्यों घबराता है...
तू क्यों घबराता है।