तुम्हारा ज़िक्र
तुम्हारा ज़िक्र


नूर चेहरे पे औ पलकों को झुकाये रखना
मेरी बातें हो तो होठों को दबाये रखना।
मैंने अक्सर जिसे देखा है तुम्हारे अंदर,
बाद मेरे उसी गुड़िया को सजाये रखना।
मेरी हर शायरी में ज़िक्र तुम्हारा होगा,
रुख-ए-उल्फत सदा ग़ज़लों पे बनाये रखना।
देख ना ले कोई उंगली पे अंगूठी का निशाँ,
ऐसे रहना की दुपट्टे से छुपाये रखना।
तेज़ पक्षी है वो दाने सभी ले जाएगा,
छत पे नज़रें बड़ी चौकस से टिकाये रखना।
नाम अहले वफ़ा में है तो नसीबाँ जन्नत,
वरना सामान भी दोज़ख़ का लगाए रखना।
कि मां का लाडला पिता का सहारा भी हूँ,
तोड़ना मत कभी ऐसे ही बनाये रखना।
प्यास लग जाये समुंदर को क्या पता कब की,
इतनी गर्मी है सो दरिया को बहाये रखना।
मेरा होना या ना होना भी दो मसले हैं अलग,
तुम ये करना जो बचा है वो बचाये रखना।
हार जाएंगी आँधियाँ भी तेरी ज़िद पे यहाँ,
सब्र का इक दिया प्रांजल तू जलाये रखना।