धर्म (मज़हब) बड़ा या इंसान
धर्म (मज़हब) बड़ा या इंसान
बता दिया उस रब ने कि है क्या तेरी औक़ात इंसाँ,
हिन्दू, मुस्लिम बाँटा तुमने मैंने भेजी ज़ात इंसाँ ।
जान सको तो जानो जाके मरने वालों में है कौन,
कहर से बचने के लिए संग रहने वालों में है कौन ।
कहाँ गये वो हिन्दू और कहाँ गये सब काज़ी मुल्ला,
बता सके जो चेन्नई में कि सुरेश मरा या अब्दुल्ला ।
कहाँ गये वो राम-भक्त और कहाँ गये वो टोपीदार ,
कहाँ गये वो कट्टरपंथी और धरम के चौकीदार ।
अपनी जाति अपना मज़हब अपना सबकुछ जपते ।
अपनी मस्ज़िद अपना मन्दिर अपना ही घर कहते ।
क़ुदरत से दिखलाओ लड़ के कितनी तुम में ताक़त है ।
पूछो ताल ठोक गगन से क्यों कर दी ये हरक़त है ।
वो चाहे धरती सब सून वो चाहे जग सारा सून ।
फिर क्या पाने को कहते हो ये मेरा ये मेरा ख़ून ।
देख अनदेखा करते क्यों आखिर रंग तुम एक समान ।
ईश्वर अल्लाह एक है तो नफ़रत क्यों मन में विद्यमान।
उठो चलो अब ख़त्म करो ये तेरी मेरी बातें सब ।
जिन्हें ज़रूरत आन पड़ी है मिल के दो सौग़ातें सब ।