तुम ही तुम हो
तुम ही तुम हो
सिवा हमारे हर किसीको दिखते हो,हर कोई सून सके तुम्हे।
रुह तक पोहाचती उस् अवाजसे हम तो पिघल चुके होते कब के।
घुस्सा भी तुमसे, शिकायत भी तूमसे। इबादत सिर्फ तुम्हीसे।
कुच भी बिनामांगे सबकुच मिलाहे तूम्हीसे।
पास तो ना कभी आये तुम,दूर भी ना कभी हूवे
सोचे तो तुम्हीं तुम हो, धुंडे तो कही गुम हो।
