तेरे होने की मुझको आदत है माँ
तेरे होने की मुझको आदत है माँ
तेरे होने की मुझको आदत है माँ
तेरा ना होना मुझे मंजूर नहीं
तेरा जीवन तुने मुझे समर्पित कब का कर दिया है
निसंदेह अब जीवन मेरा तेरा है
संग तेरे ही जिया हैं माँ
तेरे बिना जीना नहीं हैं
उंगली को तेरे जब मेरे हाथों ने पकड़ा
तब मुझे गिराने का समर्थ किसी ने नहीं रखा
पसंद है भोजन तेरे हाथों का
तेरे बिना जरा हैं फीका सा
ख्वाइश मेरी बस इतनी तू जाना कहीं नहीं
क्युकी तेरे होने की मुझको आदत है
वार्ता करनी है मुझे तेरे सुंदर मुखडे की
ना जाने मैं क्यूं वर्षो से मौन थी
आज गले लग लेने दे मुझको
कदाचित कल अफताब को देखना मुमकिन ना हो.