स्त्री
स्त्री


बिखर गई हूं पंक्ति बन कर मैं !
सबने अपना- अपना अर्थ लगाया मेरा !
कौन समझा मगर सही अर्थ को
मैं चाहती हूं
भले ही मैं पंक्ति की विशालता खो दूं
फिर भी
मुझे शब्द ही रहने दिया जाए
एक विशेष अर्थ हो जिसका
जिंदगी के निबंध में !
विशालता नहीं
संपूर्णता चाहिए मुझे !