समाज बदला क्यू नही जासकता
समाज बदला क्यू नही जासकता
समझ नहीं आता
क्यों लड़कों को रोने नहीं दिया जाता,
लड़कियों को रोकर दुःख भुलाने कह दिया जाता है।
समझ नहीं आता
क्यों लड़कों को कमाने तक सिमित कर दिया जाता है,
लड़कियों को घर तक सिमित कर दिया जाता है
समझ नहीं आता
क्यों हर चीज़ को लिंग के अनुसार बांट दिया जाता है,
सपनो पर रोक लगा दिया जाता है।
समझ नहीं आता
क्यों ये कहा जाता है लड़के खुल कर दर्द बताया नहीं करते,
लड़कियां खुल कर बात नहीं किया करती।
समझ नहीं आता
क्यों ये भेद भाव किया जाता है,
क्यों इंसान के एहसासों को लिंग में बांधा जाता है।
समझ नहीं आता है
क्यों ये तौर तरीके निभाना ज़रूरी बना दिया जाता है,
क्यों इस समाज के अनुसार ढलने को मजबूर किया जाता है।
समझ नहीं आता कौन सा समाज है जहां सब आंसुओं के गुलाम हैं
कोई भी इस समाज में सुकून देखा ही नहीं जाता।
समझ नहीं आता है
क्यों ये समाज बदला नहीं जा सकता,
क्यों नए ख्यालों के साथ बिना भेद भाव का समझ बनाया नहीं जा सकता।