STORYMIRROR

अरुण कुमार

Abstract

5.0  

अरुण कुमार

Abstract

सियासत

सियासत

1 min
246


मज़हबी जवाबों वाले सियासी सवाल रहने दो,

मुझे रोटी दो, वतन परस्ती का खयाल रहने दो,


रातें लूट कर ख्वाबों के वादे क्या खूब करते हो,

सेहरा में सराब सी खूबसूरत ये चाल रहने दो।


तिजारती फितरत ने तुम्हारी क़फन तक बेच खाए,

मुर्दों के खीसे मे कम से कम इक रुमाल रहने दो।


मेरे सवाल-ए-वफा का जवाब नहीं तो न सही,

सारे शहर में रोज़ नया इक बवाल रहने दो।


मेरी छत को आसमां बनाने का नुस्खा लाये हो,

जो बेघर कर दे, नहीं देखना वो कमाल, रहने दो।


तुम कहते हो ज़ुबान रखने का मलाल होगा मुझे,

तुम रखो अपना गुमां मुझे ये मलाल रहने दो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract