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अरुण कुमार

Others

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अरुण कुमार

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"इसीलिये तो लिखता हूँ"

"इसीलिये तो लिखता हूँ"

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घुल कर कलम कि स्याही में, कागज़ पे जो रिसता हूँ,

मन कि पीड़ा कम होती है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।


जब बीती रातें बचपन की, जवानी को जगाया करती हैं,

जब भोर तक आँखें, उसी कहानी को सुनाया करती हैं,

जिसमें दादी अक्सर कहती थीं, मैं ‘राजकुंवर’ सा दिखता हूँ,

छूट गया वो राज-पाठ, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।

मन कि पीड़ा कम होती है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।


जब मानसून के मौसम की, पहली बदली छा जाती है,

और वो लड़की कॉलेज वाली, सपनों में आ जाती है,

फिर कई दिनों तक ‘भीगा-भीगा’ सा जो दिखता हूँ,

ये बारिश अक्सर होती है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।

मन कि पीड़ा कम होती है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।


जब कोई बच्चा सिग्नल पे, ‘भीख’ माँगने आता है,

और जब कोई नेता चौखट पे 'वोट’ मांगने आता है,

मैं बस दो रुपये और एक वोट में हर बार जो बिकता हूँ,

अपनी कीमत बढ़ा सकूँ, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।

मन कि पीड़ा कम होती है बस इसीलिए तो लिखता हूँ।


जब ‘चीखें’ दबती हैं, संघर्ष की जीव्हा काटी जाती है,

जब धर्म-जात के नाम पर मानवता बाँटी जाती है,

क़त्ल होने के डर से, मज़हबी भीड़ से जो छिपता हूँ,

ज़िंदा हूँ! ये बताना है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।

मन कि पीड़ा कम होती है, बस इसीलिए तो लिखता हूँ।

बस इसीलिए तो लिखता हूँ ।                                                



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