सीता स्वयंवर प्रवल राणा
सीता स्वयंवर प्रवल राणा
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।
मिलेगा मिलेगा वर, लली को जनक की।।
बहुत दूर से भी आये हैं राजा।
मन में सजाये हैं सीता की आशा।
वरेगी एक को ही बिटिया जनक की।।
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।।
1
धनुष को उठाने की, बाज़ी लगी थी।
हिला भी सके ना, सारी ताकत लगी थी।
वीरों से शून्य हो गयी, सभा ये जनक की।।
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।। 2
अंधेरा जनक की, आँखों पे छाया।
क्यूँ कर स्वयंवर, था मैने रचाया।
प्रभु आज रख लो, लाज अपने जनक की।।
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।। 3
गुरु ने कहा राम,उठ स्वयंवर में जाओ।
करो कार्य पूरा, थोड़ा भुजबल दिखाओ।
उठाते ही टूटा धनुष, खुशी देखो जनक की।।
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।। 4
राम जी ने स्वयंवर,ये पूरा किया है।
जानकी को भी,राम सा वर मिला है।
राम की हो गई अब, दुलारी जनक की।।
रचा है स्वयंवर, है नगरी जनक की।। 5
