सहती है तू
सहती है तू
क्यों सहन करती है तू
क्यों सब कुछ सहती है तू
बोलती क्यों नहीं अपने हक़
के लिए
क्यों बेवजह सहती है तू
कहते हैं नारी दुर्गा की शक्ति है
फिर क्यों अत्याचार सहती है तू
तुझ में भी थोड़ा काली का अंश
ज़रूर है
उसको पहचानती क्यों नहीं हैं तू
उठ अब समय हैं तेरा
लड़ अपने हक़ के लिए तू
बहुत सह लिया तूने हर एक
अत्याचार
अब तेरी ख़ुशियों की बारी है
मत सोच इस समाज के बारे में
इनको सिर्फ़ अपनी ख़ुशियों से
मतलब है
तू तोड़ हर पिंजरा अपनी बंदिशों का
तेरी चुनर में बहुत ऊँची उड़ान है
