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Supriya Sinha

Inspirational

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Supriya Sinha

Inspirational

शीर्षक - कृषक

शीर्षक - कृषक

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विवश, बेजान, लाचार है

कृषि प्रधान देश का कृषक ,

दूसरों का पेट भरने वाले अन्नदाता

खुद बना हुआ है याचक ।

सियासत की लोमड़ नीति में

चढ़ रही कृषकों की बलि ,

कर्ज़ में डूबा , आहत कृषक

माँगे हक तो मिलती गोली ।

रुधिर -श्रमसीकर जला देता है

अपना वो मेहनत की आग में,

 पेट भर दो जून की रोटी नसीब

 नहीं होती कृषक के भाग में ।

 कभी सूखा, कभी आंधी-तूफान 

कभी बेतहाशा बाढ़ निगल जाती फसल,

 कभी ओलावृष्टि बरसाए आसमान 

 कभी दीमक चाट जाती फसल‌ ।

भूख की बेचैनी, पैसों की किल्लत

जिंदगी हर वक़्त लेती कठोर इम्तहान,

अन्न की उचित कीमत नहीं मिलती, अंततः

दर्द की कीमत चुकाते हैं देकर अपनी जान ।

प्रगति और विकासशील देश में पूर्ण नहीं है

मेहनतकश कृषकों के लिए सरकारी अनुदान,

फिर गर्व से कैसे कहें ? उन्नत कृषि प्रधान

भारत देश हमारा ! जय जवान, जय किसान ?

   


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