शीर्षक --अपनी आवाज उठाना
शीर्षक --अपनी आवाज उठाना
जब तुम्हारे कपड़ों से, तुम्हारे साजसज्जा से ,
बेपरवाह हंसने से, बिंदास सच बोलने से
तुम्हारे चरित्र को धूमिल किया जाए।
तब तुम अपनी आवाज उठाना!!!
जब परिवार के इज्जत की दुहाई दे कर,
मासूम आंखों के सपनों को तोड़कर,
अपना स्वार्थ पूरा किया जाये
तब तुम अपनी आवाज उठाना!!!
जब तुम्हारे सम्मान को अपमानित किया जाए।
जब तुम्हारे सामने तुम्हारी माँ के परवरिश पर उंगली उठाई जाए।
तब तुम अपनी आवाज उठाना।!!
जब तुम्हें तुम्हारे प्यार,परिवार, सपनों में से किसी एक को चुनना को कहा जाए।
जब तुम्हारे स्वाभिमान को अपने अहम से कुचला जाए!
तब तुम अपनी आवाज उठाना!!!
जब तुम्हें परम्पराओं की बेड़ियों में बाँध कर दबाया जाए
तुम्हारी ख़्वाहिश का गला घोंटा कर शौक पूरे किये जाए
तब तुम अपनी आवाज उठाना!!!
बेशक थोड़ा बुरा बन जाना।
ख़ुद के लिए पहले ख़ुद खड़ा होना।
अपनी नाकामी का दोष किसी और पर ना लगाना पड़े।
बस इसलिए तुम अपनी आवाज उठाना!!!
ईश्वर ने दी बराबर क्षमता
फिर क्यों रखतीं संशयः
जो कमतर आके समाज तुम्हें
करके भेदभाव कलुषित
फिर तुम अपनी आवाज उठाना!!!
अगर लोग रोके तुम्हें अपनी पहचान बनाने से
पहरा लगाये, कि थम जाओ
मजिंल को तुम पाने से
सुनो तुम अपनी आवाज उठाना!!!
न थम के रूक जाना कभी
तुम अपनी आवाज उठाना!!
तुम अपनी आवाज उठाना!!!!
