शहर
शहर
कुछ निशां को पढ़ने-पहचानने की कोशिश कर रहा हूं
एक अरसा हो गया है यादों को छूटे हुए
कितनी आवारगी थी उन पलों में
जो साथ गुजरे थे दोस्तों या अपनों के साथ
आज शहर लौटा तो उन यादों ने दस्तक दे दी
जिंदगी को जानने और जीना सिखाया था शहर ने
लेकिन अब कुछ भी अपना सा नहीं लगता
कुछ चेहरों-आवाजों की तलाश अब भी है
जिन्हें सब कुछ खोकर भी पाने की है चाहत।