सावन
सावन
आया सावन मन भावन
मन झूम उठा है सखी री।
छायी है घटा सावन की,
चहुं ओर छायी बदरिया कारी
गहन घनघोर है घटा गगन में
चंचल बिजली खेल रही
आंख मिचौली ।
आंगन में रिमझिम पड़ रही
सावन की फुहार है
माटी की भीनी सौंधी सुगंध ,।
रही है मन को लुभाए
धरती ने ओढ़ ली चुनरिया
हरियाली मनभावन सी
बिखरे रहे हैं अनेक रंग।
धरती आकाश का
यह मिलन अनोखा
खिल उठी है प्रकृति
हो रहा मन आनंदित हो रहा
मन झूम उठा है सखी ।