रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली


जब तू ना निभा सके इन रिश्तों को,
फिर क्यूं कैद करे जीवन में इन रिश्तों को,
कुछ अहमियत नहीं तेरे लिये ये रिश्ते की,
फिर क्यूं दिखावा करे उन्हे निभाने की,
नहीं तेरे लिये कोई भाई बहन माँ और बाप ,
फिर क्यूं परिवार में रहने का फोकट करे पाप,
जब तू ना निभा स्के रिश्तों को,
फिर क्यूं कैद करे जीवन में रिश्तों को,
नहीं वक्त तेरे पास अपनों के लिये,
फिर क्यूं बांधे" रिश्तों की पोटली"
जब तेरे से ही सहन नहीं होती रिश्तों की खटास ,
फिर क्यूं देता फिरता है लोगों को रिश्तों की सलाह,
जब तुम आये इस धरती पर माँ बाप के जरिये ,
सम्मान देने क्क औकात नहीं बेइज्जत मत करिये ,
तेरे अकेलेपन की वजह है तेरी अकड़
बता जब तेरे से ही सहन नहीं होती रिश्तों की खटास ,
फिर क्यूं देता फिरता है लोगों को रिश्तों की सलाह,
जब तू ना निभा सके इन रिश्तों को ,
फिर क्यूं कैद करे जीवन में रिश्तों को।