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Rohan Kumar

Abstract

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Rohan Kumar

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परवरिश

परवरिश

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दातुन चबा सकने वाले इन दातों पर

प्लास्टिक के ब्रश की रगड़ ,

भला इसमें क्या अच्छा हैं


गाँव की मिट्टी में खेलने के बजाय, वो फ़ोन में उलझा रहता

भला इसमें क्या अच्छा हैं


वो जो तुझसे प्रोजेक्ट के झूठ के सहारे 200 रूपये ज्यादा लेता हैं,

तू ही बता क्या इससे वो सच्चा हैं


वो जो nylon के कपड़े पहनता हैं

उससे बेहतर तो घर का बना लंगोट या कच्छा हैं


तू सब जानता हैं, समझता हैं

फिर बता बनता तू क्यों बच्चा हैं


वो जो फ़ोन में अश्लील चीज़े उसने छुपा रखा हैं

अरे नन्हे सम्राट, चम्पक और बालहंस उससे तो अच्छा हैं


वो जो तुझसे छुप छुप के छल्ले बनाता हैं

तूने सोचा हैं क्या, क्यों उसे घर का खाना क्यों नहीं भाता हैं


साले, wtf,bc जैसे शब्द जब वो बकता हैं

सोचा हैं कभी तूने

जुबाँ पे हरि नाम उसके क्यों नहीं होता हैं


तूने देखा होगा उसको अपनी बहन के स्वाभिमान के लिए लड़ते हुए

पर शायद तूने नहीं देखा उसको किसी और को

घूरते और हाथ पकड़ते हुए

तुझको लगता हैं न की वो तेरा गुरुर हैं अहम् हैं

पर नहीं दरअसल ये बस तेरा वहम हैं।


खैर छोड़ वो तेरा बच्चा हैं,

तुझको शायद बेहतर पता, क्या उसके लिए अच्छा है।


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