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VRAJESH CHAUHAN

Abstract

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VRAJESH CHAUHAN

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प्रकृति

प्रकृति

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बगैर किसी के मांगे जो अपनी

नैमतों के खजाने लुटा देती है,

वह दिलदार प्रकृति होती है

इनसे बार बार असंवेदनशील व्यवहार करना

नाकाबिले माफी नासमझी की प्रवृत्ति होती है !


फूल खिलते हैं ,खुशबू फैलती है,

फल टपकते हैं जीवन चहकता है,

सब कुछ बहुत सहज है

पूरा जीवनचक्र स्वनिर्मित है,

मगर इसे वासना की जंजीर से

बांधती इंसानी आकृति होती है !


सच पूछो तो प्रकृति एक आशिक का दिल है

जो महबूब को सबकुछ देने को तैयार रहता है

मुहब्बत से भरा दिल जब कदमों तले बिछ जाता है

तो उससे खेलना गुरूर की वृत्ति होती है !


प्रकृति एक मयखाना भी है जहाँ विभिन्न

अहसासों की मय अलग अलग बोतलों में रहती है

मय पीते पीते इतना बहकना कि बोतल ही तोड़ दे

यह इंसान की कायरतापूर्ण कृति होती है !


ये ईश्वर द्वारा प्रदत्त बहुमूल्य खजाने का नक्शा है,

इसमें लिखे संदेशों में ही उसकी भक्ति है

इसे जिन्दगी खोज लो तो यह बंदगी है

वरना यह स्वयं द्वारा हारी एक अतुल्य स्मृति होती है !


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