प्रकृति प्रेम
प्रकृति प्रेम
लगाओ पेड़ धरा पर अनेक।
करो तुम काम यही बस नेक।।
...नहीं तो पछताओगे।।
बहती कल-कल करती नदियाँ,
प्यास बुझाते बीती सदियाँ।
पानी की बर्बादी रोको,
बिन पानी जल जाओगे।
....नहीं तो पछताओगे।
कहाँ रह पाओगे?
वृक्षों से सुंदरता होती,
वर्षा और हरियाली होती।
पेड़ों को कटने से रोको,
तब ये जहां बचवाओगे।
.....नहीं तो पछताओगे।
कहाँ रह पाओगे?
जल और वृक्ष देवता दोनों,
प्राणी के जीवन दाता दोनों।
इनका मत तिरस्कार करना,
वरन जीवन कैसे पाओगे।
.....नहीं तो पछताओगे।
कहाँ रह पाओगे?
प्रकृति प्रेमी बनो रे प्यारे,
दुनिया पूजे नाम तुम्हारे।
एक कटे तो दो लगवाओ,
तभी तो खुशी मनाओगे।
....नहीं तो पछताओगे।
कहाँ रह पाओगे?
