प्रकृति की पुकार
प्रकृति की पुकार
चलो आज एक सौदा करते है
कुछ तुम दो, कुछ मैं दूँगी,
जो तुम एक पेड़ लगा दो
बदले में जीवनपर्यन्त शुद्ध हवा दूँगी,
जो तुम अपने बगीचे में मुझे सहारा दो
अपनी चहचाहट से तुम्हे जगा दूँगी,
जो तुम एक दीप जला दो
तुम्हारे घर-आंगन को रोशनी से सजा दूँगी,
जो तुम अभी से पानी बचा लो
कभी तुम्हे प्यासा न रहने दूँगी,
चलो कर लो अब तो आगाज़
बंद करो मुझ पर अत्याचार
घर आंगन में लगा दो वृक्ष दो-चार
वरना धरती पर तबाही मैं मचा दूँगी।