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Anil Malviya

Inspirational

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Anil Malviya

Inspirational

प्रकृति की पाठशाला

प्रकृति की पाठशाला

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प्रकृति तेरे अजूबे भी कितने निराले,

कल खेत में बीज डाले आज पौधे बनने वाले हैं,

फर्श से अर्श पे तू और अर्श से फर्श पे लाती है,

राजा को क्षण में रंक और रंक को राजा बनाती है,

इतना तो सीखा तुझसे और अब भी सीखता हूं,

मेरी कहां औकात इतनी मां फ़िर भी तुझे लिखता हूं,

क़ुतुब मीनार, ताज महल से कहां खूबसूरती को जाना मैंने,

लहलहाती फसलों से बड़ी कोई खूबसूरती नहीं दिखी मुझे,

सही मुस्कान किसे कहते है,

जानता नही मैं,

जब मंद-मंद पुरवाई चले, गुलाब की पंखुड़ियां 

होंठ बन मुस्कुराए,

वो मुस्कान हर मुस्कान पे काफ़ी है,

परफ्युम और सेंट की खुशबू नही लगती अच्छी जाने क्यूं,

फसलों के बीच मिट्टी में दौड़ता पानी और वो माटी की भीनी-भीनी खुशबू हर परफ्युम पे भारी है।

जलप्रपात की धाराओं का वीणा सा गान,

वो फूलों की पंखुड़ियों से बूंदों का फिसलकर गिरना,

फिर दूसरी बूंदों का वहां आ जाना,

सिखाता है, कुछ भी स्थिर नही है, 

समय के साथ सबकुछ बदलता रहता है,

समय उसे अपनाता है जो समय के संग ढल जाता है,

वो नए फूलों, फलों का दूसरे की जगह आना,

वो पतझड़ में सब उजड़ जाना और फिर वसंत का आगमन और हरियाली का छा जाना,

जैसे जिंदगी में कुछ हारने पर फिर जीत की उम्मीद लाना।

वो प्यार के बदले प्यार मिलना,

पेड़ों से भी और पशुओं से भी,

प्रकृति की ये पाठशाला बड़ी तालीम देती है।



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