परिंदा
परिंदा
काश में भी परिंदा होता
ना मेरी कोई सरहद होती
ना मेरा कोई देश होता
काश में भी परिंदा होता।
ना ऊँच नीच की बात होती
ना गोरे काले का भेद होता
ना इसका होता ना उसका होता
आसमान सब के लिए समान होता
काश में भी परिंदा होता।
ना आरक्षण का झंझट होता
ना सिफ़ारिशों का पंगा होता
इस डिमॉक्रेसी के खेल में
ना अपना अस्तित्व खोता
काश में भी परिंदा होता।