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Rachna Bhatia

Abstract

4.2  

Rachna Bhatia

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परीक्षा

परीक्षा

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230


परीक्षा से 

डरना मेरी फितरत नहीं

मैं स्त्री हूँ


मेरा तो जीवन ही परीक्षा है

जन्म पाने से जन्म देने की

अपनी जीत को हराने की


तुम्हारी हार पर विश्वास की

ज़ुल्म चुपचाप सहने की

तुम्हें क्षमा करने की


अश़्क पी कर मुस्कुराने की

अंजान रिश्ते में बँधने की

अपने भरोसे की


मैंने तो अग्नि परीक्षा तक दी है

और तो और

कटे परों से आसमान छुआ है


तुम केवल घर चलाने की परीक्षा देते हो

हाँ .. उत्तीर्ण भी हो ही जाते हो

पर कभी सोचा है..

अगर मैं घर बनाने की परीक्षा में फेल हो जाऊं


मैं रिश्तों में बँध ही न पाऊँ

तुम्हें क्षमा न करूं

हाँ

जन्म ही न दूँ

तो तुम्हारी परीक्षा का

क्या मोल रहेगा

किताबी ज्ञान कितना

काम आयेगा


चलो एक काम करते हैं

परीक्षा तुम्हारी लेते हैं

तुम्हारी वफ़ा की परीक्षा

मुझे क्वाल्टी समय देने की परीक्षा

मुझे सम्मान देने की परीक्षा


मुझे भोग्य नहीं योग्य समझने की

मेरे सपनों को साकार करने की परीक्षा

मुझे…

मैं रहने देने की परीक्षा

क्या..

दे पाओगे..

बोलो कुछ तो बोलो

यूँ न हारो


परीक्षण स्थल तक तो चलो

डरो नहीं

मेरा भरोसा तुम्हें हारने न देगा

आखिर..

तुम्हारी इसी जीत में

मेरी जीत भी छिपी है

हमारी जीत छिपी है।


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