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Akansha Rupa chachra

Abstract

4.5  

Akansha Rupa chachra

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प्रांजल

प्रांजल

2 mins
323


लोगों ने न पहचाना जिसको

बरबस तानो से प्रहार किया

बंधनों मे बांध कर रूढिवादियो ने

रीतिरिवाजों का नाम दिया


मन की कोमल भावनाओं का संहार किया

समाज के कठोर रिवाजों ने

मन के कोमल फूलों की पंखुडियो को 

भी कुचल डाला।


लोक लाज बचाने के लिए 

बेमानी रिश्ते निभाने के लिए 

अफसोस कहर ही डाला

कहते थे खून के रिश्ते ही सच्चे होते है

एक माँ की कोख से जन्म लेने वाले रिश्ते 

ही सच्चे होते हैं


बचपन मे माँ को अपनी ममता मे बाँधने वाले

पिता को जरूरतों की महत्वाकांक्षा की उडान मे झोकने

वाले बच्चों ने,कैसा अनर्थ कर डाला

जिंदगी भर पाला पलकों पर बैठा कर

बेरहम कुछ रिश्तो ने ममता का गला भी घोंट डाला

 

हाय कैसा कुकर्म हुआ, जिनके पाला था उम्मीदों से

उन्होंने वृद्धावस्था में वृद्धाआश्रम में ही भेज दिया। 

सच्चाई की चादर ओढे क्यो ढोंग करे है समाज मे

घर मे दो वक्त की रोटी बूढी माँ को देने मे कष्ट  होता है।


भंडारा करे दिखावे मे ,

साक्षात माँ-बाप ईश्वर है।

इनकी दुआओं मे सब है।

इनके दिल को दुखाना महापाप है।

इनके कदमों मे जन्नत का सुख है।

इन्हे खुश रखना परम कर्त्वय है

इनके जाने के बाद लोक दिखावे,भंडारे चलाने 

से क्या फायदा।


अपनों को ओस की बूंदों की भांति सँभालना

दिल टूटने की आवाज़ नहीं होती

दर्द बडा गहरा होता है।

माला के मन को सी जिंदगी बीत जाएगी 

जो कल तेरा था वो आज मेरा

और कल किसी और का

ये दुनिया रैन बसेरा। 


सच्चाई की मटकी सिर पर रख सच बटोर लो

सबके दिल मे रब बसता है

दिल कभी न किसी का तोडो

दिखावे की चकाचौंध मे सच्चे , रिश्ते तो कभी ना छोडो।

माँ बाप कभी पुराने बेबुनियाद सोच वाले नही होते

नई पीढी अपना नजरिया बदल लेती है

अच्छी सोच, साधारण पहनावा,ऊँचे विचार ही 

मानवता की पहचान बन जाती है।


बुजुर्गो को स्नेह की अभिलाषा होती है

दौलत तो उन्होंने ता उम्र कमाई होती है।

जब हमे उनकी जरूरत थी।

हमे बडा करने मे उन्होने जवानी भी वार दी।

हमारी जरूरतों के सामने अपनी भूख ,प्यास 

भी न्यौछावर कर दी।

आओ उनके बुढापे को सँभाल ले।

तानों और छींटा कशी नहीं 

उन्हें सम्मान और ढेर सारा प्यार दे।


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